Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) (३०) [दरबयान-सुरतसंघ-औरअगत्यका
ठहराव.] __जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताब पृष्ट [१९] पर मजमूनहै, सुरतसंघका पराजय करके-सुरतसंघ-अगत्यका ठहराव-नामकीकिताब मिथ्यात्व रोगका औषध-राजेंद्रसूर्योदय किताबमें बताकर तमामहिंदुस्थानके श्वेतांवर संघकों समर्पण करदिइगइ, ऊससे सभीमहाशयोंकी शंकाका-नाश होगया.
(जवाब.) सुरतसंघका पराजय कोइ क्याकरेगा ? उसकातो जयहुवाहै.-उनोने कैसा उमदा अगत्यका ठहरावकियाकि-जिससें• उनकेशहरमें-सनातन जैनश्वेतांबर आम्नायमें नयेमजहलकी-जड-जमनेनहीपाइ. और उनोने उसकिताबकों मुल्कमुल्कमें भेजदिइकि-जिससे तमाम-जैनश्वेतांबर-चारस्तुति-माननेवालोका-तीनथुइकेबारेमेंशक-रफा होगया. मिथ्यात्वरोगका औषधदेखना होतो चतुर्थस्तुति निर्णयकिताबमें देखो,-राजेंद्रसूर्योदय-किताबका-जवाब-शांतिसूर्योदय तयारहै. आमलोगोकों रौशन-हो, सुरतसंघका पराजय नहीहुवा-बल्किन् ! जयहुवाहै. महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजीकाबनायाहुवा-चतुर्थस्तुतिनिर्णय-हिंदुस्थानकेबहार-आफ्रिका-एडन-बमां-वगेरामुल्कों-जहांजहां सनातन जैनश्वेतांबर चारस्तुतिमाननेवाले श्रापक गयेहे-वहांतक-पहुचाहै. और त्रिस्तुतिपरामर्शभी पहुचेगा,
जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताब पृष्ट (१७) लेखकने लिखाहै" नतो तीनको उठाइ-न-चारको"-यथोचितस्थानमें जहांकरनेकी है-वहां-करतेहै.
(जवाव.) फिर बात क्याहुइ ? यथोचितस्थानमें जहांकरनेकोहै-वहां-करतेहो-तो-उसका नाम क्यों नही लीखा, ?-प्रतिक्रमणकेवख्त चारथुइ करनामंजूरहै-यानही ?-लेखक-इसबातकों जाहिर करे, अगरकोइ कहे आवश्यकसूत्रकी बडीटीकामें वैयावच्चगराणं पाठ

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