Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh

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Page 90
________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) (होयर.) सावथ्वी नगरीमें एक दिन-वास मुनिजन जाकर्यो, एक दिन भदीलपुर भीतर-पाप तनकों सब हों, मिथिलापुरी एकदिन टीके-वहां ध्यान जिनजीको धर्यो, राजगृही दिन पांच बसे-वहां सकलपाप तनकों जर्यो, (मिलान.) अयोध्यामें दिन आठ बिराजे-मिली केइ ज्ञानीकी समाज, तीरथ किने आपके जनमजनमके सुधरे काज, (3) मांडवगढ रहे एक दिवस वहां-कों आप भारी उपकार, शंखेश्वरजी रहे दिनतीन रख्यो मनमें आचार, तारंगाजी दिनतीन रहे वहां-तप्तबुझाइ तनकी अपार, केशरीयाजी रहके छहदिन बोलेहे वहां जयजयकार, (शेयर.) फलोदी पारसनाथजीमे-तीनदीन तपसा करी, मकसीपारसनाथजीसे-पखवाडे विनति खरी, काशी दिनरहे आठ भेटे-आपसे केइ शासतरी. चंपापुरी एकमास रहकर-चर्चा करी मुनि रसभरी, (मिलान.) सुरजमल्ल कहे क्षत्रीयकुंडपर-तीनदिवस बेठे मुनिराज, तीरथकीने आपके जनमजनमके सुधरेकाज, (4) [गुरुभक्तिपर-शेयरदार-लावनी-खतमहुइ.--]

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