Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh

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Page 82
________________ ७२ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) -अगत्यका ठहराव करके तीनथुइके फैलावकों रोका, और विद्यासागर वजरीये अपनी कलमके शास्त्रसबुतदेकर तमाम मुल्कोंमें रोकरहे है, इससे ज्यादे और क्या चाहतेहो, ?-देखिये ! पीतांबरोने क्या क्या ! करदिखायाहै ? पीतांबरनाम कुछबुरा नही है, कृश्न-लेश्यासेपीतलेश्या-हरसुरतसे अछीहै, हां ! कृश्नांबर और-मलिनांवर वेशक ! खिलाफ कानुन-जैनशास्त्रके है, जिज्ञासुजनमनःसमाधिकिताब-सफह (१४) पर तेहरीरहै, न्यायरत्नने कितने अन्यमतियोकों जैनीकिये उनके नाम बतानेमें क्यों डरतेहै ? क्यौं-न-डरे ?-शिथिलमार्गी-होनेकेलिये झूठीबातें लिखमारतेहै, (जवाव.) लेखक जिनकों साधुमानतेहै उनका कठिनमार्ग जा. हेर करे जिससे आमलोगोकों मालूमहोकि-वे-ऐसेकंठिनमार्गीहै, और डरता-वह-होगा जो-खिलाफहुकमजैनशास्त्रके तेहरीरकरे,-और-आप अपने नामसे-या-हस्तारक्षकी सहीसें जाहिरमें-न-आवे न्यायरत्नहरलेखमें अपनेनामसे-औरहस्ताक्षरकी सहीसे जाहिरमें आतेहै, फिर कौनकहसकताहौक न्यायरत्न डरतेहै, न्यायरत्नने जिसजिसगरमजहबवालोकों तालीमधर्मकी देकर जैनीकियेहै-जिसकों तलाशकरनाहोमुलकोंमें-फिरकरकरलेवे, न्यायरत्न-न-शिथिलमार्गीहै-न-जुठीबातेंबनानेहवालेहै,-अवजरा कठिनमार्गी-और-शिथिलमार्गीका बयान सुनिये! जिससे तुमारेदिलका शकरफाहो,-पेस्तरके जैनमुनि-बनमें और उद्यानमें रहतेथे आजकल तुमारी ताकातनही ऐसाकरसको, देखलो ! आजकलशहरमें आकररहनाहोताहै. अगर कठिनमार्गीबनना चाहतेहोतो-वनमें जाकररहो, कोरीसफाइ बताना दूसरीबातहै, जैनमुनि किसीकेलडकेकों दीक्षादेवेतो बिनाहुकम-मा-बापके नहीदेना शाखका फ

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