Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh

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Page 61
________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) हदेवे यह पाठभी जूठहै, खयालकरो? यह वाग्-अनुष्टानहुवा-या-नही.? और लौकिकवस्तुओकी सिद्धिकौनचाहताहै ? इसका खुलासा जाहेर करे, तीनस्तुतिप्राचीनताकिताबसफह (४) पर बयानहैकि-असहिज्ज-देवासुर-नाग-सुवनजख्खरख्वस-किन्नरकिंपुरिसगरुलगंधवमहोरगाइ देवगण-इत्यादि,अर्थात् देवअसुरादिकोकीसहायता-न लेनेवाले श्रावककहलातेहै, और आजकल अतिनिकृष्टदेवोंकीउपासनामें अतिदुर्लभ श्रावककुलबरबादकरतेहै, (जवाब.) अगर देवताओकीसहायलेनामंजुरनहीथातो-पेस्तर क्यौं कुबुलकरचुकेकि-सम्यकदृष्टिदेवोंकी स्तुतिकभी कभीकरनापडतीहै,? सहायताहीनहीलेना तो फिरस्तुति क्यों करना ? सहायतान-लेनेवालेश्रावककहलातेहै इसबातपर पावंदहो-तो-फिर आपकौनहुवे? इसपरखयालकिजिये ! गोष्टामाहिल-निन्हवके-अधिकारमेंदेखो' आवश्यक-वृत्तिका-पाठहैकि-जब-गोष्टामाहिलनेअसत्यप्रा . संत्रचतुर्विधसंघनेमिलकरकायोत्सर्गकिया, और देवर .सपाकिइ तब विदहक्षेत्रमेंजाकरभगवान्कोपूछोकि-दुर्बलि ..कोबुलाकरकहा-महाकुछकहताहै-वहबातसचहै ? या कापुष्पाचार्य वगेरासंघ-जोवतानेजाकरतीर्थकरभगवान शमाहिल कहताहै-वह-सचहै ? दे " . को छा-और-आकरकहाकि-संघ-सचाहै, गा (पाठ-आवश्यक-सूत्रवृत्तिका.) एतच्चाश्रद्दधाने-तस्मिन्-सर्वसंघेनमिलित्वाकायो सर्गेण देवता-आकृष्टा, सा-आगता, उवाच-आदिशतुसंघा-इक्तासंघेन-गत्वातीर्थकर पूछ ! यदुर्बलिकापुष्पाचार्य

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