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( त्रिस्तुतिपरामर्श . )
हमारा कहना था, हमभी - तो यही कहते थे, मंदिर की बात है, प्रतिक्रमणकी ही, कहिये ? इसमे आपने नयी इल्मीयत क्या ! दिखलाई ? जिससे हमारा इतमीनानहो, क्या ! इसी भरुसेकहतेथे पंचांग में सबजगह तीनथुइलिखी है, हम समझतेथे कोई बडासबुतरखते होगे. मगर मालूम होगये आपलोगोके सबुत ! हरजगह मंदिरकाही जिक्रलातेहो, और प्रतिक्रमण के बारे में: कोइसबुत नहो देसकते, यादरहे ! विद्यासागरकी दलीलकों - तोडना - मोतीचूरका लड्डु - नहींहै - वल्के ! लोहकेचनें है, आपलोगोकेदिये हुवे पंचांगीके सबुत देखलिये, तीनथुइका शौर उडारखा है. मगरप्रतिक्रमणमें तीनथुइकरनेका एकभी सघुतनही देसकते, -
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(२७) (जवाब - राजेंद्रसूर्योदय- किताबके लेखका) राजेंद्रसूर्योदय किताब - पृष्ट (३२) ते हरीर है, साधु - चोथेगुणस्थानवालेदेवोंकी स्तुति कैसे कर सके ?
( जवाब . ) क्यौं - न - करसके ? उनकी धर्मश्रद्धापर तारीफकरना कौनदोषकीबात है ? - अगर इसबातकों नामंजूरखतेहो - तो फिर हरहमेरा प्रतिक्रमण बैठकर देवाणं आसायणाए - देवीणं आसायणाए पाठ क्यों पढते हो? इसपाठकोंभी पढना छोडदों, और स्थानांगसूत्रमेंजो बयानहैकि - सम्यकदृष्टिदेवताओंका अवर्णवादबोलनेसे दुर्लभबोधीपनी हासिलहोता है इस बातकोभी नामंजुरकरो, और खयालकरो ! देवता अगर धर्मश्रद्धामें लाइकतारीफ केनही है - तो उनको शासनके रक्षपाल कैसे मुकरर किये गये, ?