Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh

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Page 75
________________ ६५ (त्रिस्तुातपरामर्श.) स्कारैः-यदा-नमस्कारेण प्रणिपातापरनामतया-प्रणिपातदंडकेन-एकेन, मध्या-मध्यमदंडकश्च-अरिहंतचेइयाणंइत्यादिः-एकः-स्तुतिश्चप्रतिता-एका-तदंतएक-या-दीयते तएवयुगलंयस्यांसादंस्तुतियुगलाचैत्यवंदना, शक्रस्तवोप्यादौ भण्यते ( अथवा ) दंडकयोः शक्रस्तवचैत्यवंदनरुपयोर्युगलं स्तुत्योश्चयनसा दंडस्तुतियुगला, इहचैका स्तुतिचैत्यवंदनादंडक कार्योत्सर्गानंतरं श्लोकादिरुपया अन्यान्यजिनचैत्यविषयतया-अधुवात्मिका तदनंतरंच अन्याध्रुवा, लोगस्सुजोयगरेत्यादिनामस्तुतिसमुचाररुपा (यद्वा) दंडकाः शक्रस्तवादयः पंच-स्तुतियुगलंच-समयभाषया स्तुति चतुष्टयं-उच्यते, आद्यात्रिस्रोपिस्तुतयोवंदनादि रुपस्वादेकागण्यते, चतुर्थीस्तुतिरनुशास्तिरूपत्वात् द्वितीयोच्यते-तथापंचभिर्दडकैः स्तुतिचतुष्केणस्तान प्रणिधानेन-च-उत्कृष्टा, .... इसपाठका माइनायहहैकि-चैत्यवंदन तीनतरहकीहोतीहै, जधन्य-मध्यम-और उत्कृष्ट-जिसमें मध्यमचैत्यवंदन उसकोंकहते है, जो नमुथ्थुणंपढकर यावत् अरिहंतचेइयाणंतक पाठपढे, औरएक नमस्कार मंत्रका कार्योत्सर्ग करके एकस्तुतिकहे, या-मयचैत्यवंदनके नमुथ्थणं यावत्स्तुतिपर्यंत पढकर लोगस्सउज्जोयगरे कहे, अथवा चारस्तुतिकहकर देववंदनाकरे, इसकानाम मध्यमचैत्यवंदनाहै, उत्कृष्ट चैत्यवंदन उसको कहतेहै-जो-पांचदंडक-चारस्तुति-स्तवन-जयवियरायवगेरा पणिधानपाठतकपढे, यहां भाष्यकारने मध्यमचैत्यवंदनमें जो स्तुतियुगल कहा उसकामतलब अवचूरिकारने इसतरह खुलासाकियाहैकि अवलकी सीनस्तुति अर्हतचैत्यकी-दुसरीसवतीर्थकरकी और तीसरी-जो-ज्ञानकी है-वह-सववंदणवत्तीयापाठके शाथकहीजातीहै. इससेसबुतहुवा वंदना

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