Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
View full book text
________________
६४
( त्रिस्तुति परामर्श.)
जूरनहीकरेगें, मालूमहोगये लेखकके शास्त्रसबुत ! कोरेदमभरनेवाले है, कहते है देवताकी मदद नहीं लेना चाहीये, मगरजैनशास्त्र फरमाते है, धर्मकामके मदद लेना कोई मुमानीयतनही, कइसबुतभी उपरदे चुके, यातो लेखक इसकोंबुलकरे, या - कहदेवे - हम इसको नही मानते, - जैसे चोथीथुइको वीतरागदेवकी वैरिणी बतलातेहो. इनपाठोकोंभी कहदो - वीतरागदेव के वैरी है, -
(२८) (प्रतिक्रमणमें चारस्तुतिकरनेका सबुत, ) (जिसकों भाष्यकार - अवचूरिकार- और नवअंगसूत्रकी टीका बनानेवाले अभयदेवसूरिमहाराज - प्रमाणिक- और - आवश्यकके अंतर्गत बतलाते है, -
चैत्यवंदन भाष्य में चैत्यवंदनकेलिये (२४) द्वार बयान फरमाये, उसमे पांचमे द्वारपर तीन किस्मके चैत्यवंदन करना फरमाया, उसका पाठ इस जगह बतलाते है, देखो !
[पाठ चैत्यवंदनभाष्यका, ] ( गाथा २३ मी. )
वमुक्कारेण जहन्ना - चिइवंदण मझदंडथुइजुअला, पणदंडथुइचउक्कग-थयपणिहाणियउक्कोसा,
[ पाठ अवचूरिका. ]
नमस्कारेण - अंजलिबडशिरोनमनादि लक्षणप्रणाम मात्रेण - यद्वानमो अरिहंताणंइत्यादिना, अथवा - एकेनश्लोकादिरूपेण नमस्कारेण - इतिजातिनिर्देशात् - बहुभिरपिनम

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90