Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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mmamataram
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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) दिस्वरुप-जो-है, सब-एकभेदमें है, और चोथीथुइ अनुशास्तिरुपहै. इस लिये इसकों दुसरेभेदमें शुमारकिइगइ, इनदोनोंभेदोंकों मिलानेसे स्तुतियुगल-यानी-चारस्तुतिहुइ, इसीसबुतसें स्तुतिचतुष्टयपद दियाहै, देखलो ! इसपाठसे साफतौरपर चारस्तुति सबुतहुइ, किसकी ताकात है इसकों गलत कह शके, ? (भाष्यकारने चारस्तुति बयानफरमाइ)
[उसकापाठ, अहिगयजिण पठमथुइ-बीयासव्वाण तइअनाणस्स, वेयावच्चगराणउ-उवउगथ्थं चउथ्थथुई, (५२) ....( माइना,) चारस्तुतिमें अवलस्तुति-एकतीर्थकरकी-दुसरी सबतीर्थंकरोंकी-तीसरीज्ञानकी-और-चोथी वैयाटत्यकरनेवाले देवता
ओंकी, देखिये ! इसमेभी चारस्तुतिका सबुतहै जिसकों कोइअकलमंद गलतनही कहसकता, खयालकरनेकी जगहहैकि-पहेली-दुसरी-तीसरी स्तुतिकहनेसे पेस्तर शक्रस्तव-लोगस्स-और--पुख्खरवर्दी-इनतीनोंकी अखीरमें वंदणवत्तीयापाठ कहकर कायोत्सर्ग करनाकहा. और च र्थस्तुतिके वख्त सिद्धाणंबुद्धाणं कहकर वंदणवत्तीयापाठ बोलना नहीकहा. सबबइसका यहहैकि-तीर्थकरदेवोकों-और-उनके ज्ञानकों - दनीकपूजनीक समझकर वंदणवत्तीयापाठ कहागया. और चतुर्थस्तुतिमें शासनदेवताको वैयावृत्यकरनेवाले समझकर वैयावच्चगराणपाठ कहा, वंदणवत्तीयापाठ नहीकहा, देखलो ! तीर्थकरगणधरोने अवलहीसे फरमादियाहैकि-तीर्थकर और ज्ञान वंदनीकपूजनीकहै, और शासनदेवता वैयावृत्यकरनेवाले है, यहबात प्रतिपक्षीकों क्यौं-न-पसंद हुइ, ? मगर ठीकहै ! जबतक-आदमी पक्षपातसे अलग नहींहोता असलीबातपर उसका खयाल नही जमता.

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