Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) (२६) (आचार्य-भद्रबाहुस्वामीने-आवश्यक नियुक्तिमेंप्रतिक्रमणकेवख्ततीनथुई
___ करना नहीं कहा,-)
तीनस्तुति प्राचीनताकिताब-सफह (८) पर दलीलहै वीरसंवत् (१५४) में महाराज भद्रबाहुस्वामीने नियुक्तिवनाइ जिसकों आज (२२७७) वर्षसे अधिक होनेको आयेतो कहिये ! (३०) वर्षसे तीनथुइ निकसी-यह-कहना उत्सूत्रहै-या-नहीं, ?
(जवाब.) कौनकहताहै आवश्यकनियुक्तिमें प्रतिक्रमणके वख्त तीनथुइकही, अगर कहीहो-तो-कोइवतालावे,-वहां-मृतकसाधुकेकलेवरकों परठकर आनेके वख्तकी बातहै-और-लेखकअपनीबातकों सचकरनेकी कोशिश करताहै, मगर यादरहे ! अकलमंदलोग इसवातको कभी मंजुर-न-करेगें, प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरना इसनियुक्तिमें नहीं कहा, अगर कहाहै-तो पाठबतलावेलेखककेही दियेहुवे सबुतोसे मालूमहोगयाकि-उनकेपासकोइ पुख्तासबुतनहीहै. हरजगहमंदिरकीवात अगाडी लातहै, यह नही मालमकि-मंदिरमें तो एकस्तुतिभी करना कहीहै, फिरतीनथुइकाही क्या निश्चयरहा, (३०) वर्षसें प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरनेकी प्ररुपणाशुरुहुइ-यहषातबहुतसचहै, इसमें कोइगलतवात नही, लेखकलिखतेहै नियुक्तिकों बने आज (२२७७) वर्षहुवे-हमकहतेहै इससे तुमारीबात क्या सबुतहुइ ? अगर उसमेंप्रतिक्रमणकेवख्त तीनथुइ करनेका पाठ वतलाते-तो-तुमारीबहादूरीथी, मगर बतलाते कहांसे ? उसमेतो प्रतिक्रमणकानामनिशानभीनही, अमर कोइ लाखचतराइ खैले, मगर अकलमंदोंके सामने एकभी-नहीं चलसकती, और हमतो घरके भेदी ठहरे,-हमारे सामने क्या ! कोइ कहेगा,-किसीकमअकलकों-यहबात-समझाना, हम-सब समझेहुवेबैठेहै,

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