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( त्रिस्तुति परामर्श . )
करना - अकलमंदीका कामनही, " सवथ्थचेइए थुइ तिन्नि- तिन्नि-वाकes " - यहपाठ मंदिर के बारेमें है, चैत्यपरिपाटी करनेकों जाना - उस बख्त अगर मंदिर बहुत हो - और - वख्तथोडाहो - तो एकस्तुतिभी पढना कहा, फिर एक थुकी णाभी करना चाहिये, इसबखतजोचर्चा चल रही है प्रतिक्रमणकेबारेमें चल रही है, प्रतिक्रमणकीजगह मंदिर काहवाला देना कौन इन्साफकी बात है ? दूसरी जगहका सबुत दुसरीज महदेना और अपनीबातकों सचकरने की कौशिश करना शिवाय पक्षपातके दुसरानही कहंशकते. अकलमंदलोग ऐसी पेंचदार बातकों हर्गिज ! मंजूर नही करेंगे, हमलोगोकों आपका सबखुलासा हालमालूमहै, जैनतत्वादर्शमें - और - श्राद्धविधिमें भी मंदिर की बात है, प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरनेका वहांको पाठनही, प्रतिपक्षीके दियेहुवे सबुतगेर मुमकीन है, एक जगहतो आचार्य हरिभद्रमूरिकों चोथीथुइ-नयीबयान करनेवाले बतलातेहो - तो फिर उनके बनायेहुवे दूसरेशास्त्रोंकों क्यों मंजुररखतेहो ? बडे अफशोषकी बात है अपनी दलील - सचकरनेके लिये आदमी क्या क्या ! बातें जाहिर करता है - जोकि - अकलमंदोके खयालमें दुरुस्त नही आसकती, -
किताब - तीनस्तुतिप्राचीनता - पृष्ट ( ५ ) पर मजमन है, इस प्रकार कइ आचार्योंके प्रयत्नसें देशमात्रमें चारस्तुति प्रसरी, जव कोइ नयामजहब निकलेतो - खूब फैलता है, और जुनेमजहबकी कदरनहीरहती. ( जवाब ) कौन कहता है आचार्यो के प्रयत्नसे चोथीथुइ चली है, ? चारथुइ तीर्थकरोके वख्तसे चली आती है, अगर कदीमसें-न-होतीतो - वैयावच्चगराणका पाठ क्यौंहोता ! पक्षपातके चश्मेकों उतारकर कोइदेखे, सबुतहुवा चोथीथुइ कदीमसें है, एकशख्शके: प्रयत्नसे तीनथुइकी प्ररूपणा शुरुहुइ, मगर वहज्यादे चलसकी नही, सुरत विकटोरिया प्रेसमें सत्यक्षग्राहीके नामसेछपे हुवे इस्तिहारमें कुबुलरखा