Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
View full book text
________________
५०.
(त्रिस्तुतिपरामर्श.) वालेभी माने, और यहभी-बातमंजुररखीकि-किसीकिसीवख्तसम्यकदृष्टिदेवोंकीस्तुति करनापडतीहै, हमपुछतेहै तकलीफके वख्तभी क्यों उनदेवोंकी स्तुतिकरना, पेस्तर इसीतीनस्तुतिप्राचीनता-किताबके सफहदूसरेपर लिखतेहो-इष्टफलकीसिद्धि-शुभकर्माधीनहै, और यहांकहतेहो कभीकभी उनअधिष्टायकदेवोकी स्तुतिकरनाभीपडतीहै, क्या ! खूबलेखकहै-जो-अपनेही-लेखसें-आप लाजवाबहोजाय,
तीनस्तुतिप्राचीनताकिताब-सफह (२) पर लेखकदलील करतेहै कल्पनियुक्तिमेकहाहै इसलोकमें चक्रबादिभोग-परलोकमें इंद्र-समानिकादिपद-और-तीर्थकर पदवीकेलियेभी आशा-न-करनाचाहिये,
(जवाब.) कौन कहताहैकरो ! औरफिरकभीकभीसम्यकदृष्टिदेवोंस्तुतिकरनाभी क्यों मंजुररखतेहो ? निस्पृहवननाथा-तो-पुरेहीबनते ! एकजगहकुबुलकरना-औरएकजगह-न-करना किसघरका न्याय है ? मालूमहोगइ आपलोगोंकी निस्पृहता ? और यहभीबतलाना चाहिये दीक्षादेतेवख्तजोविधि-कराइजातीहै-उसमेंशासनदेवता और वैयावृत्यकरादिकोंकाकायोत्सर्ग क्यौंकरतेहो ? इसकोंभीछोडदो, क्योंकिआपलोगतो निस्पृहताका झंडा उठाये हुवेहो उसमें खललआयमा,
___ तीनस्तुति प्राचीनताकिताबसफह (१३) पर मजमूनहैकि-यदिभगवान्को देवदेवीयोंकीप्रार्थनाअभिष्टहोतीतो बडेबडेसूर्य-चंद्र-इंद्र-इशानादिदेवोंका वागनुष्टानवताकर लौकिकवस्तुओंकीकी दर्शाते,
(जवाब). अगरतीर्थकरगणधरोंको देवदेवीयोंकीबेंअदवीकराना मंजूरहोतातो स्थानांगमूत्रके पांचवेस्थानपर सम्यकदृष्टिदेवताओंका-अवर्णवाद बोलनेसेदुर्लभवोधीपना हासिलहोना क्योंफरमागये? क्या ? इसपाठकों कोइ-जूठ-कहसकताहै, ? अगर लेखककी ताकातहो-तो-क

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90