Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) शख्शकों अपनी भूलपर खयाल करनाचाहिये, और उस्ताद जोकूछ फरमावे उसपर अमल करना चाहिये,
(आवश्यकसूत्रके-अवलअध्ययनमें पाठहै कि,-) जह जच वाहलाणं-अस्साणं जणवएसु जायाणं, सयमेव खलिण गहणं-अहवावि बलाभिउगेणं, पुरिसझाएवि तहा-विणीय विणयंमि नथ्थिअभियोगो, सेसंमि अभियोगो-जणवयजाए जहा आसे,
(टीका,) यथा जात्यवाल्हिकानामश्वानां जनपदेषु मगधेषु जातानां स्वयमेव खलिनस्य-कविकत्यग्रहणं अथवापि बलाभियोगेन तथा पुरुषजातेपि पुरुषविशेषेपि विनीतविनये अभ्यस्तवैनेथिके नास्ति अभियोग:--शेषेविनयरहिते बलाभियोगो वर्तते,__(माइना.) जैसे उमदा घोडा लगामकों खुद ले लेताहै-याउसको पकडकर मुंहमें लगाम पहनाइजातीहै, ऐसे विनयवान् चेला अगर खुद-समझजाय और कुतर्क न-करे-तो निहायत उमदा वातहै, अगर समझानेपरभी-न-समझे और गुस्ताखीकरे-उसकेलिये वलाभियोग (यानी.) जवानी ताडना देना, देखिये ! इस पाठसें क्या ! सबुतहुवा, ? इसपर गौर करो, न्यायरत्न इसीवातपर पावंदहै. जो जो श्राव क न्यायरत्नके सामने अदबसें पेंश आतेहै उनकों न्यायरत्न कभी साल बात नही कहते, मगर जब कोई गुस्ताखी करने लाताहै तो उसकों बेशक : सख्त बात कहतेहै,-रायपसेणीसूत्रमें परदेशी राजाकोंकेशीकुमार जैनाचार्यने-मूढतराएएं तुमं पएसीराया-कहा, ज्ञातासूत्रमेंनागिला-माहणीको अधन्या-अपुन्या कही. आवश्यकसूत्रमें-अविनयी

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