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( त्रिस्तुति परामर्श.)
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पृछाप्रतिवचन पृष्ट (२३) पर बयान है शांतिविजयजीके लेखोसे जैनपत्रका अधिपति - पत्र क्यों भरता है, ?
( जवाब . ) शांतिविजयजीके लेख इन्साफी होते है इसीलिये उनके खोसे जैनपत्र भरा जाता है, - शांतिविजयजीके लेख जैनपत्र में छपे और पृछाप्रतिवचनके लेखककों नागवार गुजरे यहभी एक उसके भाकी बात है,
पृछाप्रतिवचन पृष्ट (२६) पर मजमन है समग्रश्रुतकासार चारिहै उसकी तर्फदृष्टि फेरो जहां वह चरणरनहै वही समग्र सामायि कादि - बिंदुसारांतश्रुत है, वह - न - हुवा तो कुछ - न - हुवा,
( जवाव . ) अगर समग्रश्रुतकासार चारित्रही है-तो-ज्ञानऔर श्रद्धा कुछकार्यकारी न रहे, फिर ग्रंथबनाने के लिये पंडित लोगोकों रखना, उनकों तनख्वाह देना, मंगोबिंदपुस्तके इधर उधर मंगवाना यह सब आडंबर क्यों ? तुमतो एकेलेचारित्रकोंही सारबतलातेहो, और यहभी कहाते होकि - चारिन - हवा - तो कुछ-न- हुवा, फिरतो ग्रंथबनाना बेकार होगया, अकेले चारित्रकोंही इख्तियारकरके बैठरहनाचाहिये, लेखकपुरुष बातेंतो बडीबडी बनाते है मगर अबतक जैन आगमका पुरेपुरामतलब नहीपास के है. जैनशास्त्रोमें शुद्धश्रद्धा - शुद्धज्ञान - और - शुद्धचारित्र तीनों केमिलनेपर मोक्षकां मार्गकहा, अकेलेचारित्रसें मोक्षनही है,
श्रामण्यरहस्य - पृष्ट (१५) तेहरीर है वर्त्तमानमें भी देखो ! न्यायरत्न खडेहुवे, ज्ञानप्रकाश किया. गाडीमेंवेठनेसें कुछदोष नही, छापा छपवाना कागज लिखना, वगेरा वगेरा,
( जवाब . ) पंडितों की मदद से ग्रंथ बनवाना, सुरतके संघने जब अगत्यका ठहराव किया- तब - एक जैनबंधुके नामसे " जाहेरखबर "