Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) हुकमशास्त्रके नही, बोजा उठवानेके बारेमें खयाल करो! कोइ मुनि बीमारहो-और-उनकों एकगांवसें दूसरेगांव जानाहो-उसहालतमें कपडेया-पुस्तकपंने-दूसरोंसे-न-उठवावेतो-क्या-वहांही धरे रहनेदे, ? और. अकेले चले जाय, ? क्या ! खबवातहैकि-जिसकोकोइभी अकलमंद मंजूर नही करसके, अगर कहाजाय इरादेधर्मके दूसरेसे-वह-बोजा उठवायाजायतो कोइ हर्जकी बातनही, तोफिर इसीसडकपर आओ, ! उत्कृष्टता किसबातकी रखतेहो. ? घूमघामकर अपवादमार्गपर आना और बातें बडीबडी बनाना-यह-अकलमंदोके सामनेनही चलसकता.
(२०) ॐ (दरबयान--मानवधर्मसंहिता किताबके.) .
___ पृछापतिवचन किताब पृष्ट (२१) पर मजमूनहै मानवधर्मसंहिता-ग्रंथ-जोछपाहै, यदि अवसरमिलातो उसकीभीखबर लिइजायगी,
(जवाब,) हम राजेंद्रसूर्योदय-औरअभिधान-राजेंद्रकोश-जोकि-अबतक बनरहाहै-उसकीभी खबरलेनेकों मुस्तेजहै, जिसकेदिलमें जो उमेदहो पुरीकर लेवे, मालूमनहीकि-विद्यासागर-तुमारे लेखपर दशगुनीटीका करनेका तयारहै, मानवधर्मसंहिताकी कोइ क्याखबरलेगा, ? उसकोंछपे आज सातवर्ष होगये किसीकीताकात-न-हुइकि-उसकी कोई खबरलेता, बल्के ! कइमहाशयोने उसकेबारेमें तारीफलिखि, और छपेबाद फौरन बीक गई,
(२१) (बीचबयान-विद्यासागरके लेखोंका,)
प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (११) परतेहरीरहै-शांतिविजयजी-जैन पत्रमें-कइदफे शास्त्रविरुद्ध लेखलिखते है इसकाभी जवाब पंचांगीके अनुसार दिया जायेगा.

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