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( त्रिस्तुति परामर्श. )
पर्युषणनिर्णयपत्रिका पृष्ट (१८) पर मजमून है धर्मोपदेशकेलिये रैलविहार करना - शास्त्रमें कहा है तो क्या ! आत्मारामजीने उनग्रंथोको नहीदेखाथा, ? जो चलनेका खेद सहन किया, वह गाडीमें बेठकरजाना क्या नही जानतेथे, ?
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( जवाब . ) बेशक ! वे - जानतेथे तभी तो - तीनथुइकी प्ररूपणाको गलत बतलागये. और चतुर्थस्तुतिनिर्णयभाग दुसरा - बनाकरजाहिरकरगये जिससे जिज्ञासुओका शकरफाहोगया, और श्री पूज्यजी - -श्रीधरणेंद्रसूरिजी जोकि - सनातन - जैन श्वेतांबर आम्नायमें चार स्तुतिपर पावंदथे प्रतिक्रमणमे तीनथुइकरना क्या ! -नही जानतेथे ? तीनथुइकी प्ररूपणाकरजाते ! मगर कैसेकरे, ? वे जैन आगम के माहितगारये, धर्मोपदेशदेनेके लिये नावमें बेठकरजाना शास्त्रोंमें क्यौं फरमाया, ? तीकरगणधर - जैन मुनियोंकों - एकहीजगह बेठेरहना फरमाजाते, मगर कैसे फरमावे ! धर्मोपदेशदेना बडे फायदेका कामहै, जो बात - शास्त्रों में सबुत पाइजातीहो - उसकों - अमलमें लाना कोइहर्जकी बात नही,
श्रामण्यरहस्य पृष्ट (९) पर बयान है जिनश्रावकोने उन आत्मारामजीकों आचार्य माने है और उनकेही शिष्य आत्मारामजीकी नींदा लिखते है- उनको सर्वप्रश्न पुछते है. और महाप्रतिष्टासे बतलातेह वह सर्व अनाचार में पूरेपूरे पंडित है,
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( जवाब . ) अनाचार में पुरेपुरे पंडित - वे - है - जो - खिलाफहुकम तीर्थकर गणधर के नयामजहब इजाद करते है, सवाल पुछनेवाले जिसको ज्ञानवान् समझतेहोगे उनहीकों सवाल पुछतेहोगे. किसीकों कोइसवाल पुछे और उसकेलिये कोई एतराजहो-यहभी एकजमानेकी खुबीसमझो, अगर किसीका ख्यालहो विद्यासागर रैलमें बैठते है फिरभी लोगउनकों क्यों सवाल पुछते है ? तो सौचो ! यहबात अकलके ताल्लुक है, जिसकों