Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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२८
(त्रिस्तुतिपरामर्श.)
आबादीके मुल्क नही ? जहांकि-शांतिविययजी बसात विचरे और
और अबभी विचररहेहै, श्रावकमंडलके ऐसे थोडेही मुल्क बाकी रहे होगें जहांकि-शांतिविजययजी-न-विचरेहो,
- पृछाप्रतिवचन पृष्ट (१७) पर तेहरीरहैकि-मनिश्रीआत्मारामजीको-यहबात नहीं सूझ पडीथी, ? और उनके शिष्य शांतिविजयजीके नेत्रभी तबतक नही खुलेथे ? नही तो दोनोंजने सलाह करतेरैलमें बेठनेकी आचरणा चलाडालते,
(जवाब.) बेशक ! महाराजश्रीआत्मारामजी-आनंदविजयजीको सुझ पडीथी, जभी तो चतुर्थस्तुतिनिर्णय किताब-बनाकर-तीनथुइकी प्ररुपणाको गलत बतला गये, जिससे तमाम मुल्कोंमें जैनश्वेतांबर श्रावकोंका शक रफा हुवा, और अपने धर्मपर पायबंद रहे, देखिये ! सुरत-जैनश्वेतांबर चारस्तुति माननेवालोने कैसा उमदा ठहराव किया, ? लेखक इसपर ख्यालकरे, !-और-इसवापरभी गौर करेकि-यह-जवाबभी कैसा उमदाहै, जिसकों पढकर अकलमंद लोग ताज्जुब करेंगे, शांतिविजयजीके नेत्र हमेशां खुलेहै देखलो ! किसकदर तुमारे सवालोंके माकुल जवाब देतेचले जारहेहै, अगरकोइ हजार चतराइ करे मगर अकलमंदोके सामने किसीकी चतराइ नहीं चल सकती. अगर कोइ कहे फलाने मुनि रैलसवारी क्यों नहीं करते ? फलाने पैदल क्यों चलतेहै, ? जवाबमें मालूमहो इसकी फिक्र कोइ क्यों करे, ? अपनीअपनी कारवाइपर खयालकरना चाहिये, जो-जैसा-करेगा वैसा फल पायगा,.....पृछाप्रतिवचन पृष्ट (१८) पर दलीलहै रैलयात्रामें गृहस्थलोगोकाभी धर्म निर्वाहित नही होसकता तो अणगारधर्म कयौं कर निवाहित होसकेगा, ?

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