Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) है, इसीसबबसें हम रैलमें बेठना मुनासिब समझतेहै, पैदलविहारीमुनि लोगोमें कइ जैनमुनि ऐसे देखेजातेहै जिनकेसाथ श्रावकलोग चलतेहै, बैलगाडी वगेरा शाथ चलतीहै, मुनिलोगखुद जानतेहैकि-यह-कार्य हमारेही सबबसे होताहै, बतलाइये ! बैलगाडी वगेरासे रास्तेमें सूक्ष्म जीवोंका नाश होताहै-या नही, ? कइजैनमुनि बडीसफरमें डोलीमें बेठकर विहार करतेहै, कहिये ! डोलीकों उठानेवाले रास्तेके कीडोंकों कैसे बचा सकेगे, ? उनको तो बोजा उठाकर चलना पडताहै, कइ जैनमुनि ऐसेभी देखेजातेहै जिसमुल्कमें उनोंकों जानाहो. और-वहां उनकीश्रद्धाके मुताविक बर्तावकरनेवाले श्रावक-न-हो-तो-अपनी श्रद्धाके अनुरागी श्रावकोके शाथ विहारकरतेहै. क्या आत्मार्थी पूर्णसंयमी पैदलविहारी अकेले विहार-नही-करसकते, ? अगर कहाजाय इरादेधर्मके भावहिंसा नही. और विना भावहिंसाके पाप नही, तो फिर इसीसडकपर आओ, उत्कृष्टता किसवातकी रही, ? अगर उत्कृ. ष्टसंयमी बनना मंजूरहै-तो-पहाडोकी कंदरामें-और-बनखंडमें गुजर करना चाहिये, शहरमे आनेकी क्या जरुत ? तीनतीन चारचारवर्ष एकही-शहरमें बेठरहना यहकौनसे जैनशास्त्रका हुकमहै, ? अगर कहा जाय लाभदेखकर इरादेधर्मके बैठेरहतेहै तो फिर इसीतरह दूसरी बातभी समझलो,
पृछाप्रतिवचन पृष्ठ (१७) पर मजमुनहैकि-शांतिविजयजीकी -तो-कोइ-गिनतीही नहीहै. श्रावकमंडलसें बहार बहार फिरतेहै.
(जवाब.) शांतिविजयजीकी कोई गिनति नही तो तुम लोगोकीकौनसी गिनती है. और कौन कहताहै शांतिविजयजी श्रावक मंडलसें बहार बहार फिरतेहै, ? क्या! गुजरात-मारवाड-पंजाब-राजपुतानापूरव-मध्यखंड-मालवा-वराड-खानदेश-और-दखन-श्रावकमंडलकी

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