Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh

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Page 33
________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) -माहणीये अहएणाए-अपुरणाए-जाव-णिबोलियाए,-माइना इसका इसतरहहैकि-जब-नागिला-माहणीने धर्मरुचिनामके अणगारकों जहरमय कटुकतुंबेका पार्क खानेको दियाथा और उसकेखानेसें धर्मरुचि अणगारका अंतकालहुवाथा-उसवख्तकहाहैकि-धिक्कारहै नागिला माहणीकों-जो-अधन्या-अपुन्या-और-नींबोलीकी तरह कटुकहै जिसने जहरमय पाक-धर्मरुचिअणगारको दिया-सबुतहुवा-गुनहगारको सख्तकलामकहनाकोइ हर्ज नही.-जिसकों शक हो-ज्ञातासूत्र देखलेवे, अगरकोइ कहे श्रावकोंकों देवानुप्रिय कहनाभी-तो-शास्त्रोंमे लिखाहै, जवाबमें मालुमहो-जिसश्रावककों देवताभी धर्मसें-न-डिगा-सके उसकेलिये देवानुप्रिय कहाहै-या-अधर्मीयोंकेलिये, ? जो जो श्रावक खिलाफहुकम तीर्थकरगणधरोके चलतेहै, धपशास्त्रपर एतकात नहीं लाते और शास्त्रकी बातोंकों हंसी उडातेहै, उनको सख्त-सुस्तकहना कोइ मुमानियत नही, आवश्यकसूत्रके अवल अध्ययनमें पाठ है जो शख्स गुस्ताखीसें पेंश आवे गुरु उसकों सख्तसुस्तवचनकहे, पशलन : जो घोडा अपनी चाल चलताहै उसको चाबुक कोइ नही लगाता. लेकिन ! जब चलनेमें बदमाशी करताहै-उस हालतमें उसको चाबुक दिखलाना फर्जहै,--कोई शख्स किसी उस्तादकेपास वास्ते सवालाकों जावे तो बडे अदवसे पेश आनाचाहिये मुनिजनोंकों कइजगह मूर्योसें वहेस करना पडतीहै, जव- बहुदा-बसनदवाते पंश करतेहै उसहालतमे उसकों जवानी ताडना देना मुनिलोगोंकी फर्जहै, उसपर कइयोंका कहना होताहै मुनिलोंगोंकों गुस्सा करना ठीक नहीं, मगर अपनी भूलकों कोइ नही देखता, ? और इसवातपर कोइ खयाल नहीं लाताकि-तुमारी भूलहुइ जब मुनिलोग तुमारेपर नाराजहुवेहै. इसलिये हर

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