Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh

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Page 22
________________ (त्रिस्तुतिपरामशे.) कोइ कहतेहै अपनी संततिको बस्त्रपात्रमिलना दुसवारहोगाया-आसान ? इसलिये देखा, ३, - वृद्ध कहतेहै कांटोंकी जमीनपर गिरा इसलिये स्वशासनमें कंटकलोग ज्यादे होगें एसा जानकर देखा, लोभका कोई काम नही था, देखिये ! यहां एकपाठपर आचार्योने कितने तात्पर्य दिखलायेहै, जिसजिसमतलबसे जो जो बात ग्रंथकर्त्ताने बयान फरमाईहो उसी मतलबपर उसको समझना और उसपर अमल करना चाहिये, -wu (११) (चिरागके बारेमें कइलोगोकीराय,) . कइयोंका फरगानाहै दियेका चांदना अचितहै, मगर नही ! दियेका चांदना अचितनही, सचितहै, जिनकों शकहो कर्मग्रंथ देखे, उसमें रक्तवर्ण और उश्नस्पर्शतेउकायमें फरमाया, उद्योतनामकर्म नही फरमाया, इसबातपर कोइ खयालकरे तो बखूबी उसको मालूमहोगा. और उसके दिलका शक रफाहोगा, - प्रश्नपत्रिकाप्रश्न (९) में बयानहैकि-जिसगछका नामलेकर साधुवजेतिसगछके आचार्यनी आण-न-पाले-वो-साधुहै-या-नही,? ..(जवाब.) अगर उस आचार्यका हुक्म-मुताबिकशास्त्रकेंहोतो-उसको ब-सिरोचश्म कुबुलकर, मगर जब खिलाफ हुक्म शास्त्रके कोईवात आचार्य फरगावे-तो चेलेकी फर्जहै उसको न-माने, साधुपना अपनीकायाकी शुद्धिकेलियेहै-नकि-जूठी-होमे-हां-मिलानेकेलिये,

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