Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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(त्रिस्तुतिपरामर्श.) दांतोकी बत्तीसी चढाना देहरक्षामें सामीलहै और उसका चढाना कोइ हर्जकी बातनही, अगर कोई जैनपुनि-शौखसें-या-अपनी खूबसुरतीकेलिये दांतोंकी बत्तीसी चढावेतो वेशक मनाहै, मगर आत्मरक्षाकेलिये कोइ मन नही,
(१५) 3 ( बीच बयान-आनंदसृरिके,-)
प्रश्नोत्तरपत्रिका पृष्ट (४) पर तेहरीरहैकि-वर्तमानमें-आनंदसूरि प्रमुख मध्यमभेदमें जानना,
a (जवाब,) कौनकहताहै आनंदमूरि-मध्यमभेदमे-थे, बल्कि! उत्तमपुरुषोमें थे, आमलोग इसवातकों मंजूर करतेहैकिं-उनोने मुताबिक जमानेके तरकी धर्मकी अछीकिई, मजहबी-बहेस-वे-उमदातौरसे जानतेहै और यहगुण आचार्यों में होनाभी, जरुरीथा विना इस गुणके तरकी धर्मकी कैसे होसकतीहै, ? देखलो ! समवसरणमेंभी वादी मौजूदरहतेथे, जोकि-इन्साफस-प्रतिवादीयोंकों लाजवाब करतेथे, आठतरहके प्रभावकोंमें वादीकोंभी प्रभाव गिनेहै, महाराजश्री आत्मारामजी-आनंदविजयजी-इस जमानेमें प्रभावक होगये,-इस बातकी कोइ जैन इनकार नही करसकता,
(१६) ( दरबयान-जैनतत्वादर्शग्रंथका,-) __अगर कोइ कहे जैनतत्वादर्श-और-श्राद्धविधिमें तीनथुइ बयानकिइहै-तो जवाबमें मालूमहो-जैनतत्वादर्शमें तीनथुइ नही बयानकिइ, यात मंदिरकीथी लिखनेवालोने उसका खुलासा-नही दिया, और गुम्मलेख लिखलिखकर कहदिया तीनथुइ कहीहै, जैनतत्वादर्श

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