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( त्रिस्तुति परामर्श. )
( जवाब . ) किसचेलेकों किसगुरूने निकाल दिया इसका खुलासा जाहिर क्यौं- न- किया, 2 जाहिर करतेतो वहशख्श जवाबदेता, इन्साफ फरमाता है. चेला अगर अपने सत्यधर्मपर पाबंद हो-और-गुरु उसकों इन्साफ से निकालदेवे --तो उसमें गुरुका दोषहै, चेलेका नही, और वह गुरुही क्या ! जो इन्साफ - न - करे. सत्यवादीचेला अपनेधर्मपर पावंद रहे तो उसका कोई क्या करसकता है, ? दशवैकालिकसूत्रकी अवलगाथामें बयान है “देवाभी- तं - नमसंती जस्सं धम्मेसया मणो, " देवता भी उसकों नमस्कार करतेहै जिसका मन हमेशां धर्मपर पाबंद हो, और उसकी हमेशां फतेह होगी, उसको माननेवाले - श्रावकसम्यक्ती कहेजायगें - मिथ्यादृष्टि नही, दुसरे साधुओके मनाकरनेसें उस सत्यवादीका कोई नुकशान नही, -
(१४) (दरबयान- दांतोंकी बत्तीसीका.)
प्रश्नपत्रिका - सवाल (५२) पर प्रश्नकर्त्ताने पुछा है - साधुओने दांतोकी बत्तीसी चढाना कहां कहा है, ?
( जवाव . ) हरजगह जैनशास्त्रों में कहा है संयमकी हिफाजतकरो. और संयमसेंभी अपने आत्माकी ज्यादेहिफाजतकरो, जब आत्माही - न - रहेगा तो संयमकी हिफाजत कैसे हो सकेगी ? सबुतहुवा आत्माकीहिजाफत करना जरुरीबात है, आत्मा शरीरके ताल्लुहै, और शरीर खानपानके - जबकि खानपानकी चीज चवा - चवाकर-नखाइजाय हजम कैसे हो सकेगी, ? हजम-न- होगी तो तरेहतरहके रोग दाहोगें, और फिर उसके मिटाने के उपावलेने पडेंगे, उसलिये अगर अवलसे उपाय करलिया जायतो क्या ! हर्जहै ? सबुतहुवा
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