Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh

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Page 25
________________ ( त्रिस्तुतिपरामर्श.) १५ यदुत - मुखप्रमाणं कर्तव्यं मुखानंतकं एतदुक्तं भवति वसतिप्रमार्जनादौ यथा मुखं प्रछाद्यते, कृकाटिकायां ग्रंथिर्दातुं शक्यते तथा कर्तव्यं - त्र्यत्रं कोणद्वये गृहीत्वा यथा कृकाटिकायां ग्रंथिदतुं शक्यते तथा कर्तव्यं एतत् द्वितीयगणनाप्रमाणेन पुनस्तदैकैकमेव ग्रहणं मुखानंतकं भवतीत्यर्थः इसका माइना अवलआचुका है, सबुतहोगयाकि- मकान साफ करते वख्त जिस मुखवस्त्रिकाले मुख बांधना कहा वह उतनीबडी होनाचाहिये जो मुख और गलेतक बांधी जासके, व्याख्यानकेवख्त बांधने का इसमें कोई जिक्र नही, जोलोग परंपराका सहारालेते है उनकों याद रहे परंपरा तरहतरहकी चलपडी किसकिसपर अमल करोगे ? - शास्त्र औघनियुक्तिका फरमाना है जल्पद्मि मुखे दीयते, अगर बांधने का हुक्म होतातो दीयतेकी जगह बध्यते पाठहोता, पृछाप्रतिवचनपृष्ट (९) पर तेहरीर हैकि - आदिपदसे व्याख्यान अवसरमें सूत्र आशातना तथा अनुपयोगसेहुइ सावद्यभाषा इन दोनोदोपोसे बचाव के लिये कानमें घालतेहै यहरीति पुष्टालंबन सहित है, ( जवाब ) जोबात मूलसूत्रमेंनही, न-टीका में है कोई किससबुतसे मंजूर करेगा, सूत्रआसातनाका सहारा लियाजाय तो व्याख्यानके वख्तकाही क्या मुदा रहा ? सूत्रसिद्धांत साधुलोग हरवख्त बांचते रहते है, फिर एसाकहना चाहिये जबजब सूत्रसिद्धांत बांचना मुहपर मुहपति बांधकर बांचना, पृछाप्रतिवचनपृष्ट (९) पर हितशिक्षा के रासका सबुतादियाहैकि - " मुखे बांधी ते मुहपती" – (यानी ) मुखपर बांधीजाय वह मुहपति जानना, - ( जवाब . ) हितशिक्षा के रासकों बनानेवाले रिखवदासजी श्री

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