Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh
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(त्रिस्तुविपरामर्श.) देखिये ! इसमें किसीजगह नहि लिखाकि-व्याख्यानके वख्त-मुहपति बांधो, बल्किसंपातिमसत्वरक्षणार्थ जल्पनि मुख दीयते, एसा पाठ जाहिरहै, (यानी.) उडतेहुवे जीव मुखमें-न-आनगिरे इसलिये मुखवस्त्रिका मुखके अगाडीरखना कहा, मगर बांधना नही फरमाया, जो लोग औघनियुक्तिके भरुसे बैठेहो-वे-अपना-शक-रफा करे, औषनियुक्तिमें साफ बयानहैकि-बोलतेवख्त हाथमें रखो, मकानसाफकरतेवख्त बांधना कहा सो बारीकरज मुखमें-न-आनगिरे इसलिये कहा, और वह मुखवत्रिकाभी दूसरीतरहकी कही, जोकिगलेकेपीछे ग्रंथीबंधन-होसके-उतनीबडी होना चाहिये व्याख्यानके वख्तकी वहां कोईघात नहींहै, उपाश्रय-यानी-रहनेके मकानको साफ करतेवख्त बांधना कहा उसवख्त कोई बांधता नही और व्याख्यानके वख्त बांधनेका पक्ष पकडतेहै, दीयते पदका माइना बांधना हर्गिज ! नही होसकता,-बोलतेवख्त मुखके सामने रखनेकी मुहपति-जो-एक बीलस्त चारअगुलकी होतीहै वह जुदीहै और मकानसाफकरतेवख्त बांधनेकी जुदीहै, जोकि-उतनीवडी होनाचाहिये जिससे मुख ढका जासके-और-उसका त्रिकोण-आकारकरके गलेके पीछाडी गांठ इिइ जासके. (पाठदुसरा औधनियुक्तिका,-)
(गाथा.) चउरंगुलं विहथ्थी-एयं मुहणंतगस्सपमाणं, बीयं मुहप्प माणं-गणण पमाण इक्कैकं,
(व्याख्या.) चत्वार्यगुलानि-वितस्तिश्चैकेति एतचतुरस्रं मुखानंतकस्यप्रमाणं अथवा-इदंद्वितीयंप्रमाणं

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