Book Title: Tristuti Paramarsh
Author(s): Shantivijay
Publisher: Jain Shwetambar Sangh

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Page 7
________________ [अधिपति-जेनश्वेतांबर मेगजीन-श्रीयुत-यतिजीबालचंद्रजीका-बनायाहुवा-गुरुभक्तिपर-पद,-]. . . (रागिनी-झींझोटी.) [ जलभरन जात जमुनाके घाट-बडे ठाठसे आवतकाम नीयां जलभरन-इसचालपर..]. न्यायरत्न महाराज कृपानिधि-शांतिविजयजी जगउपकारी, स्याद्वाद नयचक्र विशारद-तारक जिनवानी उरधारी, न्यायरत्न, १, मिथ्यामतकों खंडन किनो-जैनपत्र बांचत नरनारी, कीर्ति भूमंडलमें प्रकटी-मानत दुनिया आलिम सारी, न्यायरत्न, २, खानदेश पांचोरा नगरे-पार्थचिंतामनि मंगलकारी, तासमभावे दर्श लयो मुनि-संघसकलकों आनंदकारी, न्यायरत्न, ३, तीनथुइका परामर्श कर-ग्रंथरचा और किना जारी, विद्यासागरपदके धारी-बाल*प्रभाकरको सुखकारी, न्यायरत्न. ४, ( इतिगुरुभक्तिपर पद.) [राजवैध-श्रीयुत-मोनलालजी-लक्ष्मीदजी-साकीनकुशलगढ-मालवाका-बनायाहुवा-गुरुभक्तिपर कवित.] (दोहा.-) नामशांति गुनशांतहै-शांतिमुनि अनगार, अशुभकर्मकृतविघ्नको-शांतिकरन दातार, १, चिंतामनिसम शांतिमुनि-रंगे अधिक वैराग, . पंचममें परगट भये-भविजनकेरे भाग्य. २, ** चंद्र

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