Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 17
________________ दृढ़ता से पैर रखकर हम उन्हें निरन्तर आगे बढ़ते हुए देखते है । उन्होंने अपने मन को अखण्ड ब्रह्मचर्य की आंच में जैसा तपाया था, उसकी तुलना में रखने के लिए अन्य उदाहरण कम ही मिलेंगे। जिस अध्यात्म केन्द्र में इस प्रकार की सिद्धि प्राप्त की जाती है उसकी धाराएं देश और काल में अपना निस्सीम प्रभाव डालती हैं। महावीर का वह प्रभाव आज भी अमर है। अध्यात्म के क्षेत्र में मनुष्य कैसा साम्राज्य निर्मित कर सकता है, उस मार्ग में कितनी दूर तक वह अपनी जन्मसिद्ध महिमा का अधिकारी वन सकता है, इसका ज्ञान हमें महावीर के जीवन से प्राप्त होता है। वार-बार हमारा मन उनकी फौलादी दढ़ता से प्रभावित होता है। कायोत्सर्ग मद्रा में खड़े रहकर गगेर के सुख-दुःखों से निरपेक्ष रहते हुए उन्होंने काय-साधन के अत्यन्त उत्कृष्ट आदशं को प्रत्यक्ष दिखाया था। निबंल संकल्प का व्यक्ति उस आदर्श को मानवी पहँच मे वाहर भले ही समझ, पर उसकी सत्यता में कोई संदेह नहीं हो सकता। तीर्थकर महावीर उस मत्यात्मक परिधि के केन्द्र में अखंड प्रज्वलित दीप की भांति हमारे मामने आते हैं। यद्यपि यह पथ अत्यन्त कटिन था; किन्तु हम उनके कृतन है कि उस मार्ग पर जब वे एक वार चले तो न तो उनके पैर मके और न डगमगाये। उन्होंने अन्त तक उसका निर्वाह किया। त्याग और तप के जीवन को रसमय शब्दों में प्रस्तुत करना कटिन है, किंतु फिर भी इस मुन्दर जीवन में कितने ही मार्मिक स्थल हैं, नथा कितनी ही एमी रेखाएं हैं जो उनके मानवीय रूप को माकार बनाती हैं: ___ सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य, तप और अपरिग्रह रूपी महान आदाँ के प्रतीक भगवान महावीर है। इन महाव्रतों को अखण्ड माधना में उन्होंने जीवन का अधिगम्य मार्ग निर्धारित किया था और भौतिक शरीर के प्रलोभनों से ऊपर उठकर अध्यात्म भावों की शाश्वत विजय स्थापित की थी। मन, वाणी और कर्म की माधना उच्च अनन्त जीवन के लिए कितनी दूर तक संभव है, इसका उदाहरण तीथंकर महावीर का जीवन है। इस गंभीर प्रज्ञा के कारण आगमों में महावीर को दोघंप्रज्ञ कहा गया है। ऐसे तीर्थकर का चरित धन्य है।

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