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नन्द्यावर्त राज प्रासाद
'आपाढ्स्य मितं पक्षे पष्टयां शशिनि चोत्तरापाढ़ सप्ततल प्रासादस्याभ्यन्तर वर्तिनि ।। नन्द्यावतं* गृह रत्नदीपिकाभिः प्रकाशित, रत्नपर्य के हंस-लिकादि विभषिते ।।'
-आचार्य गणभद्र, महापुराणे-उत्तरपुराण ७४।२५३-५४
(आषाढ़ शक्ल पप्ठी के दिन जवकि चन्द्रमा उत्तगषाढ़ नक्षत्र में था, तव सिद्धार्थ की प्रमन्न-द्धि गनी प्रियकारिणी त्रिशला सातखण्ड वाले राजमहल में रत्नदीपिका प्रकाशित नंन्द्यावर्त राजप्रासाद में हंस-तुलिका आदि मे मुशोभित रत्न-पलंग पर मो रही थी । अयोध्या में भारत-चक्रवर्ती के राजभवन के एक पक्ष का नाम भी नन्द्यावर्त था :)
नन्यावर्तो निवेगास्य शिविरम्पाल धीयसः । प्रासादो वैजयन्नाख्यो यःसर्वत्र मखावहः ।।
-प्राचार्य जिनसेन, प्रादिपुराण ३३/१४७.