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( जिस तरह दही को मथकर मक्खन निकालने वाली ग्वालिन मथानी की रस्सी को एक हाथ से खींचती है और दूसरे हाथ की रस्सी को ढीला कर देती है; इसी तरह जैन-पदार्थ- निर्णय-पद्धति ( अनेकान्त -- वाद) पदार्थ के किसी एक धर्म को मुख्य करती है, तो दूसरे को गौण ( अमुख्य) कर देती है, उसे सर्वथा छोड़ नहीं देती । )
इस प्रकार अनन्त धर्मात्मक पदार्थों के किसी धर्म को मुख्य और अन्य धर्म को गौण करके विचार करने से तत्व का ठीक-ठीक निर्णय होता है ।