Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 91
________________ विभिन्न (अलग-अलग तरह के होंगे। यदि ये चारों अपने-अपने फोटों को ठीक बताकर परस्पर झगड़ने लगे कि 'मेरा फोटो ठीक है, तुम तीनों के फोटो गलत है तो उस विवाद का यथार्थ तथा चारों फोटोग्राफरों के लिए संतोषजनक निर्णय (फैसला) 'स्यात्' कोई एक (इष्ट) दृष्टिकोण कर सकता है। तदनुसार निर्णय दिया जाएगा कि 'स्यात्' (सामने की अपेक्षा) इस (भवन के सामने खड़े होकर, खींचने वाले) फोटोग्राफर का फोटो ठीक है। 'स्यात्' (पीछे भाग की अपेक्षा) पीछे से फोटो लेने वाले का फोटो ठीक है। 'स्यात्' (दाहिनी ओर की अपेक्षा) दाहिनी ओर से फोटो लेने वाले फोटोग्राफर का फोटो ठीक है। 'स्यात्' (वाई ओर की अपेक्षा) वाई ओर से फोटो लेने वाले फोटोग्राफर का फोटो ठीक है। इस तरह सवका संतोषजनक यथार्थ निर्णय 'स्यात्' लगाने से हो जाता है। जगत् के विभिन्न मत-मतान्तर अपने-अपने एक-एक दृष्टिकोण ही को सत्य मानकर दूसरों के दृष्टिकोण से प्रकट की गई मान्यता असत्य वतलाकर परस्पर विवाद करते हैं। उनका विवाद 'स्यात्' पद लगाकर दूर किया जा सकता है। अनेकान्तवाद और सप्तभंगी स्याद्वाद के रूपान्तर हैं। स्याद्वाद एक वास्तविक अकाट्य सिद्धान्त है; किन्तु यह दार्शनिक तर्क-विषय है, अत: कुछ कठिन है। अनेक व्यक्ति इसका स्वरूप ठीक न समझ सकने के कारण इसे गलत ठहराने का यत्न करते हैं। ऐसी त्रुटि साधारण व्यक्ति ही नहीं, बड़े-बड़े विद्वान् भी कर जाते है।

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