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आदि जाति-विरोधी जीव शान्त व निर्भय होकर साथ-साथ बैठते थे।
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दिव्य उपदेश
समवशरण में असंख्य भव्य जीव तीर्थंकर महावीर का दिव्य उपदेश सुनने के लिए बड़ी उत्कंठा और उत्साह के साथ आये और यथास्थान बैठकर तीर्थंकर की दिव्यवाणी की प्रतीक्षा करने लगे । चकोर पक्षी को चन्द्रिका (चांदनी) वहुत प्रिय लगती है, वह चांदनी रात्रि में चन्द्रमा की ओर अपलक दष्टि से देखा करता है, इसी तरह समवशरण की जनता तीर्थंकर महावीर के मुख की ओर देख रही थी। नोर्थकर का एक मख चारों ओर दिखायी दे रहा था। वर्षाऋतु के प्रारम्भ में चातक पक्षी अपनो ग्यास आकाश से वरसे हा जलविन्दुओं को अपने मुख में लेकर बझाता है. वह और कोई जल नही पीता, अतः वादलों की ओर अपनी चाच किये वर्षा की प्रतीक्षा करता रहता है, इसी तरह समस्त जनता के कान तीर्थकर का उपदेश सुनने के लिए आतुर थे।
वहाँ अनेक मनष्यों, देवों तथा विद्वानों के हृदय में यह विचारधारा वह रही थी कि 'तीर्थंकर अव तक तो सर्वदा मौन रहे । तपस्या के दिनों में उन्होंने किसी से एक शब्द भी न कहा; परन्तु अब तो उनको जान हो गया है, अव उनके तीर्थंकर-प्रकृति का उदय होगा। पूर्ववर्ती अन्य तीर्थंकरों के समान उनका भी विश्व-उद्धारक, सर्वहितमय पावन उपदेश अवश्य होगा।
। परन्तु सारा दिन बीत गया और रात्रि भी समाप्त हो गयी, नीर्थंकर के मुख से एक अक्षर भी प्रकट न हुआ। श्रोताओं ने समझा, . अभी कुछ विलम्व है। वहाँ अनेक व्यक्ति नये आये, अनेक पहिले * 'मारंगी सिंहशावं स्पति मुतधिया नन्दिनी व्याघ्रपोतं
मार्जारी हंसबालं प्रणयपरवशा केकिकान्ता भजंगम बैराण्याजन्मजातान्यपि गलिनमदा जलवोऽन्ये त्यजन्ति श्रिन्या साम्य करुवं प्रशमिनकलपं यांगिनं क्षीणमाहम ।।'