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तीर्थंकर महावीर के संघ में ११ गणधर, ७०० केवली, ५०० मनःपर्यय ज्ञानी, १३०० अवधिज्ञानी, नौ सौ विक्रिया-ऋद्धिधारक, चार सौ अनुत्तरवादी, छत्तीस हजार साध्वी (श्रमणा), एक लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकाएँ थीं।
तीर्थकर महावीर नं २९ वर्ष, ५ मास, २० दिन तक (ऋषि, मुनि, यति और अनगार) इन चार प्रकार के साधु संघ एवं श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्रविका महित देश-विदेश में महान् धर्म-प्रचार किया ।'
अन्त में वे विहार वन्द करके पावानगर में अनेक सरोवरों के बीच उन्नत भूमि महामणि शिलातले ठहर गये । वहाँ उन्होंने छह दिन योग निरोध करके अन्तिम गुणस्थान प्राप्त किया और शेष अघाति कर्मों का क्षय करके कार्तिक वदी अमावस्या के ब्रह्ममुहूर्त में (सूर्योदय से कुछ पहिल) संसार के आवागमन से मुक्ति प्राप्त की। परिनिर्वाण-महोत्सव
जव तीर्थंकर महावीर का पावापुरी में निर्वाण हुआ, तव उस रात्रि का अन्तिम अन्धकार था। जैसे ही विभिन्न आसारों से इन्द्र को तीर्थकर महावीर के मुक्ति-गमन की सूचना मिली, त्यो ही तत्काल देव-परिवार के साथ वह पावा नगर आया । वहाँ उसने असंख्य दीपक जलाकर महान् प्रकाश किया। आगन्तुक देवों ने उच्च मधुर स्वर से तीर्थकर का वार-वार जयघोष किया, जिससे पावानगर तथा निकटवर्ती स्त्री-पुरुषों को तीर्थकर के निर्वाण को सूचना मिल गई: अत: समस्त स्त्री-पुरुष दीपक जलाकर उस स्थान पर आये। इस तरह वहाँ असंख्य दीप प्रज्वलित हो गये । मनप्यों ने तथा देवों ने तीर्थकर के निर्वाण' १ 'वामाणणनीसं पंच य मामे य बीम दिवसे य। पउविह प्रणगारेहि य वारहदिहि (गणेहि) विहरिता॥'
-ज. धव. बं. प. ८१. २ 'पावापुरस्य बहिरुनतभमिदेणे. पद्मोत्पलाकुलवतां मरमां हि मध्ये।
श्री वर्धमान जिनदेव इति प्रतीतो, निर्वाणमाप भगवान् प्रविधूतपाप्मा।
–निर्वाण भक्ति २५.