Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 69
________________ ६९ का महान् उत्सव किया । हस्तिपाल राजा मल्लगण राज्य के नायक तथा १८ गण नायकों ने मध्यमा पावा में परिनिर्वाणोत्सव भक्तिपूर्वक मनाया । तदनन्तर देवों ने तीर्थंकर का शरीर कपूर, चन्दन की चिता के ऊपर रक्खा। अग्निकुमार देवों ने जैसे ही नमस्कार किया कि उनके मुकुट से अग्निज्वाला प्रकट हो गयी, उससे सुगन्धित द्रव्यों के साथ तीर्थंकर का परम औदारिक शरीर भस्म हो गया । उस भस्म को सवने अपने-अपने मस्तक से लगाया । उसी दिन गौतम गणधर को केवल ज्ञान का उदय हुआ । तव से समस्त भारत में तीर्थंकर महावीर के स्मरण में प्रतिवर्ष कार्तिक वदी अमावस्या को स्मारक रूप में 'दीपावली महापर्वराज' प्रचलित हुआ, यह दिवस जैनों में बहुत शुभ माना गया है। इस दिन तीर्थंकर महावीर की पूजन होती है, परिनिर्वाण -पूजा होती है, और केवलज्ञान लक्ष्मी की पूजा भी होती है तथा रात्रि के समय दीपक जलाकर हर्षसूचक प्रकाश किया जाता है । * 'तीर्थंकर महावीर भव्य जीवों को उपदेश देते हुए मध्यमा पावा नगरी में पधारे, और वहां के एक मनोहर उद्यान में चतुर्थ काल में तीन वर्ष, माढ़े आठ मास वाकी रह जाने पर कार्तिक अमावस्या के प्रभातकालीन संध्या के समय योग का निरोध करके कर्मों का नाश करके मुक्ति को प्राप्त हुए । चारों प्रकार के देवताओं ने आकर उनकी पजा की और दीपक जलाये । उस समय उन दीपकों के प्रकाश में पावानगरी का आकाश प्रदीपित हो रहा था । उसी समय मे भक्तलोग जिनेश्वर की पूजा करने के लिए भारतवर्ष में पावापुर वरद वहिर्भुविनमिन विननवनके पावन वनके जिनेन्द्र श्रीवीरं मारविजयि मुनिमरामा । विजयंगेयदं ॥।' -- प्राचष्ण कवि, वर्धमानपुराण, १६।६६

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