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भक्ति-भाव से उनसे आहार लेने की प्रार्थना (पड़गाहना) को । तीर्थंकर वहीं रुक गये, चन्दना ने नवधा भक्ति पूर्वक तीर्थंकर महावीर को आहार दिया।
उस समय शुभ कार्य सम्पन्नता के सूचक रत्न-वर्षा आदि पाँच आश्चर्य हुए। चन्दना के सतीत्व की परीक्षा हुई, उसका महत्व जनता में प्रकट हुआ और वह बंधन-मुक्त हो गयी। ___चन्दना थी तो राजा चेटक की राजपुत्री, किन्तु वाग में झूलते समय एक विद्याधर द्वारा उसका अपहरण हुआ था, जव उसके चंगुल से छटी तो मंयोग से दुर्भाग्यवश उस सेठ के घर दामी के रूप में आ पड़ी। वह नवयुवती थी एवं अति सुन्दर थी, अत: सेठानी ने इस शंका से कि कहीं यह मेरे पति की प्रेम-पात्र न वन जाए, चन्दना को अपने मकान के तलघर में वेड़ियाँ पहनाकर रख दिया था और उसे रूखा-सूखा भोजन दिया करती थी। वह अभागी चन्दना मौभाग्य से तीर्थंकर महावीर का दर्शन कर सकी और उनको आहार कराने का पुण्य अवसर उसे मिला एवं उसकी दासता की बेड़ियाँ कट गयी, तव उसका सतीत्व सेठानी को भी ज्ञात हो गया; अत: सेठानी को वहुत पश्चात्ताप हुआ और उसने चन्दना से अज्ञान-वश हुए अपराधों की क्षमा माँगी।
उपसर्ग
निःसंग वाय जिस प्रकार भ्रमण करती रहती है, एक ही स्थान पर नहीं रुकी रहती, इसी प्रकार अमंग निर्ग्रन्थ तीर्थंकर महावीर तपश्चरण करने के लिए भ्रमण करते रहे। भ्रमण करते हुए जव वे उज्जयिनी नगरी के निकट पहुंचे तव वहां नगर के वाहर 'अतिमुक्तक" १ प्रन्यदा नगरे नम्मिनंव वीरम्नस्थिनः ।
प्रविष्टवानिरीक्ष्यामौ तं भक्त्या मुक्नशृङ्खना।।। --उनर पुगण ७५६. २. 'पडिगहमुच्चटाणं पादोदयमच्चणं च पणम च।
मणवयण कायमुद्धी ऐमणमुद्धि य णमिदं पुण्णं ।। उज्जयिन्यामथान्येद्युस्तं श्मशानेतिमुक्तके । वर्धमानं महामत्त्वं प्रतिमायोगधारिणन् ।'--
--प्राचार्य गुणभट, उनर पुराण, ७४/३३१.