Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 41
________________ जन्मोत्सव नौ मास सात दिन वारह घंटे व्यतीत होने पर चैत्र शुक्ला यादशी* के शुभ दिन अर्यमा योग में रानी त्रिशला ने एक अनुपम, तेजस्वी, सांग सुन्दर पुत्र को प्राची से होने वाले सूर्योदय की भाँति, जन्म दिया। उस समय समस्त जगत् में शान्ति की लहरें विजली की तरह फैल गईं। नारकीय यंत्रणाओं से निरन्तर दुःखी जीवों को भी उस क्षण में शान्ति की साँस मिली। समस्त कुण्डलपुर में आनन्द-भेरी वजने लगी। सारा नगर हर्ष में निमग्न हो गया। पुत्र-जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में राजा सिद्धार्थ ने वहुत दान किया और राज्योत्सव मनाया। जव मौधर्म का इन्द्रासन स्वयं कम्पित हो उठा तव इन्द्र को अवधिजान से ज्ञात हआ कि कुण्डलपूर म अन्तिम तीर्थंकर का जन्म हुआ है । वह तत्काल समस्त देव-परिवार को साथ लेकर, नृत्य-गान करते हुए कुण्डलपुर आया। वहाँ राजभवन में पहुँच उसने अगणित मंगल महोत्सव मनाये । कुण्डलपुर का कण-कण उन देवोत्सवों में गूंज उठा। इन्द्र ने माता त्रिशला की स्तुति करते हए कहा "माता, त जगन्माता है। तेग पुत्र विश्व का उद्धार करंगा। जगत् का भ्रम और अज्ञान दूर करके विश्व का पथ-प्रदर्शक वनेगा। तू धन्य है ! इम जगत् में तुझ जैमी भाग्यशालिनी माता कोई और नहीं है।" इन्द्र ने राजा सिद्धार्थ का भी वहृत सम्मान किया। तदनन्तर इन्द्राणी उस नवजात वालक को प्रसूति-गह मे वाहर ले आयी और माता के पास एक अन्य कृत्रिम वालक रख आयी। इन्द्र उस वाल तीर्थकर को गोद में लेकर गवत हाथी पर आम्ढ़ हो, मुमेरु पर्वत * 'मित पक्ष फाल्गनि गांगकांगे दिनं त्रयोदग्या । जो स्वोन्मस्थेषु पट्टषु मोम्येष मुभली ॥' -निर्वाण भक्ति ५. 'पार्थिव पारनं तीर्थकदृदयाचलं प्राप्तानेकार्य परिपालिन बुध मार्च निकाय नेयोलने कृतार्थ ।। -प्रावण, वर्धमान. पु. (कन्नड़) १३/३६.

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