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बड़ी उमंग के साथ राजा सिद्धार्थ के पास पहुँची। राजा सिद्धार्थ ने त्रिशला को बड़े सम्मान और प्रेम के साथ अपनी वायीं ओर सिंहासन पर बैठाया और मुस्कराते हुए आने का कारण पूछा।
. रानी त्रिशला ने मधुर वाणी में प्रभात से कुछ पूर्व देखे हुए मोलह सु-स्वप्न मुनाये और गजा सिद्धार्थ से इन स्वप्नों के प्रकट फल पूछे। __राजा सिद्धार्थ निमित्त-शास्त्र के वेत्ता (जानकार) थे, उन्होंने त्रिशला रानी के देखे हुए स्वप्नों का फल जानकर बड़ी प्रसन्नता के साथ रानी में कहा कि तुम एक मौभाग्यशाली, वलवान, तेजस्वी, अतिशय ज्ञानी, महान गुणी, यशस्वी, जगत् के उद्धारक, मुक्तिगामी पुत्र की माता वनोगी। आज वह तुम्हारे उदर में अवतरित हुआ है। इसकी शुभ सूचना देने के लिए ही ये स्वप्न तुम्हें दिखायी दिये है। पस्वप्नपूर्व जीवानां न हि नातु शुभाशुभम्॥
-क्षत्र चूड़ामणि १।१२ अपने घर अत्यन्त मौभाग्यशाली जीव का आगमन जानकर राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला को बहुत हर्ष हुआ। वे उस दिन की प्रतीक्षा करने लगे, जब उन्हें पुत्र-मख देखने का मंगल अवसर प्राप्त होगा।
देवों ने इन मंगल क्षणों में राजा सिद्धार्थ के घर वहत उत्सव किया। उसी दिन से ५६ कुमारिका देवियां त्रिशला रानी को मेवा करने के लिए नियुक्त हुई। इन देवियों ने रानी त्रिशला की गर्भावस्था में बहुत अच्छी परिचर्या की। रानी की चिर-नियुक्त परिचारिका प्रियंवदा भी रानी की सुख-सुविधा में पूरा योग दे रही थी : प्रियंवदा ने रानी को किसी भी तरह शारीरिक तथा मानसिक कष्ट नहीं होने दिया। विविध मनोरंजनों द्वारा उसने रानी त्रिशला का चित्त प्रसन्न रखा, उन्हें किसी तरह का खेद न होने दिया।
"मिडार्य नपनि तनयो भारत वास्ये विदेह कुम्रपुरे। देन्या प्रियकारियां मुस्वप्नान्संप्रदार्य विभुः ॥'
–निर्वाण भक्ति ४.