Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 48
________________ ४८ वासना का लेशमात्र भी प्रभाव क्षत्रिय नवयुवक राजकुमार वर्द्धमान के हृदय पर न हुआ। - राजकुमार महावीर ने कहा कि मैं जगत् के जीवों को मिथ्या मसार-बंधन से मुक्त होने का मार्ग वताने आया हूँ फिर मैं स्वयं गृहस्थाश्रम के बन्धन में क्यों पडं ? फैली हुई हिसा, अज्ञान, भ्रम, दुराचार, अत्याचार का मंसार से निराकरण करने का महान् कार्य मेरे सामने है ; अतः मैं कामाग्नि का दास वनकर अपनी शक्ति का अपव्यय नहीं कर सकता। अपने पुत्र का उच्च ध्यय सिद्ध करने के लिए ब्रह्मचर्य को अटल भावना जानकर रानी त्रिशला और राजा सिद्धार्थ चुप रह गये। उन्होंने मोचा कि वर्द्धमान हमारा पुत्र है, वय में हमसे छोटा है, किन्तु ज्ञान, आचार-विचार में हममें बहुत बड़ा है। हित-अहित की वार्ता तथा कर्तव्य का निर्देश हम उमे क्या समझायं, वह सारे जगत् को समझा सकता है; अतः वह जस पुनीत पथ में आगे बढ़ना चाहता है, हमें उसमें बाधा डालना उचित नहीं। __ ऐसा परामर्श करके उन्होंने कालग-नरेश जितशत्रु के राजकुमार वर्द्धमान के साथ यशोदा के विवाह का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया और फिर कभी वर्द्धमान को विवाह करने के लिए संकेत भी नहीं किया। तीर्थकर वर्द्धमान के पिता राजा सिद्धार्थ कुण्डलपुर के शासक ये। उनके नाना राजा चेटक वैशाली-गणतन्त्र के प्रमुख नायक थे, वे अनेक राजाओं के अधीश्वर थे. अतः राजकुमार वर्द्धमान को सव तरह के राज सुख प्राप्त थे। कोई भी शारीरिक या मानसिक कष्ट उन्हें नहीं था। वे यदि चाहते तो पाणिग्रहण करके वैवाहिक काम-सुख का उपभोग और कुण्डलपुर के राज सिंहासन पर बैठकर राज शासन भी कर सकते थे; परन्तु जिस तरह जल में रहता हुआ कमल भी जल से अलिप्त रहता है उसी तरह राजकुमार वर्द्धमान सर्वसुख-सुविधा

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