Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 49
________________ सम्पन्न राजभवन में रहकर भी संसार की मोह-माया से अलिप्त रहे; अखण्ड वाल ब्रह्मचर्य से शोभायमान रहे।' इस तरह राजभवन में रहते हुए उन्होंने २८ वर्ष, ७ मास. १२ दिन का समय ब्रह्मचर्य से व्यतीत कर दिया।' संसार से वैराग्य ___ तदनन्तर वर्द्धमान को एक दिन अचानक अपने पूर्वभवों का स्मरण हो आया। उन्हें ज्ञात हुआ कि 'मैं पूर्वभव में मोलहवें स्वर्ग का इन्द्र था, वहाँ मैं २२ सागर तक दिव्य भोग-उपभोगों को भोगता रहा। उसमें पूर्वभव में मैंने संयम धारण करके तीर्थकर-प्रकृति का वध किया था जिसका उदय इस भव में होने वाला है। इस समय मंसार में धर्म के नाम पर पाप और अत्याचार फैलता जा रहा है, अतः पाप और अज्ञान को दूर करना परम आवश्यक है। जब तक मैं मंयम ग्रहण न करूंगा, तव तक मैं आत्मशुद्धि नहीं कर सकता और जब तक स्वयं शुद्ध-बुद्ध १ 'वासुपूज्यो महावीरी मल्लि: पावों यदुनमः । 'कुमार' निर्गता गेहान् पृथिवीपतयोऽपरे ।' -गद्म पुगण २०/६७. 'णेमी मल्ली वीगे कुमार कालमि वामपूज्या ये पामो विय गहिदनवा मेम जिणां रग्ज चग्मि मि ।।' --निलीयपणनी ४ ६.७२. 'वीरं परिदमि. पास मनिं च वामपुज्जं च । p.. मोनण जिणं अवमेमा मामि रायाणी ।।24।। गय कुलमु वि जाया विमुद्ध बंमेमु बनिय कुलंग। न च इच्छियामिमैया कुमारवामम्मि पवइया ।।:-।।' -प्रावण्यक निक्नि 'वामुपूज्यस्तथा मल्लिनेमिः पार्श्वेऽथ मानः । कुमाराः पञ्च निप्कान्नाः पृथिवीपनयः गरे।। --कानिकयानप्रेक्षा, प. ६५.. 'प्रनिर्वागद्रेकस्त्रिभुवनजयी काममुभटः । कुमागवस्थायामपि निजबलायेन विजिनः ।। स्फरनियानंदप्रशमपदग़ज्याय म जिनी । महावीर स्वामी नयनपथगामी भवन में ।। - महावीगष्टक मात्र, 'दुक्कर तब चरणरो खंति खमो उरगमनंग य। अप्प पर तुल्ल चित्तो मोणव्यय पाणभाई य।।'-महावीर चरित्र (मिचन्द्र)

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