Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 42
________________ ४२ • पर गया । वहाँ सिंहासन पर वाल तीर्थंकर का अभिषेक किया । अभिषेक के बाद कुमार तीर्थंकर को जब इन्द्राणी पोंछ रही थी तब वे उनके कपोल-प्रदेश के जल - विन्दुओं को सुखाने में असमर्थ रहीं । ज्यों-ज्यों जितना वे उन्हें पोंछती थीं, त्यों-त्यों वे उतने ही विशेष दमक उठते थे । तदनन्तर इन्द्राणी की भ्रान्ति स्वयं ही दूर हो गयी; क्योंकि वास्तव में वे जल की बंदें नहीं अपितु इन्द्राणी के आभूषणों कं प्रतिविम्व मात्र थे जो तीर्थंकर के स्वच्छ वदन पर दमक कर जल- विन्दुओं की भ्रान्ति उत्पन्न कर रहे थे । तीर्थंकर स्वभावतः सुन्दर थे, उन्हें सुन्दर वस्त्राभूषण पहिनाये गये और खव हर्षोत्सव किया गया। नंद्यावर्त राज प्रासाद के ध्वज पर सिंह का चिह्न था, अतः अन्तिम तीर्थंकर का चरण चिह्न 'सिंह' रखा गया । जन्म समय मे ही राजा सिद्धार्थ का वैभव, यश, प्रताप, पराक्रम अधिक बढ़ने लगा था, इस कारण उस वालक का नाम' वर्धमान " रखा गया। १- षोडशाभरण धन्वा शेखर पट्टहार पदकं ग्रैवेयकालंबकम् । केयुगं गदमध्य बंधूर कटीमुत्रं च मद्रान्वितम् ।। चचत्कुंडल कर्णपूर पाणि ये कंकणम । मजी कटकं पदे जिनपतेः श्री गधमद्रांकितम ।' राजकुमार महावीर के सोलह प्राभषणों का वर्णन यहां प्रस्तुत है- १- शेखर पहार : पदक ४-प्रवेयक ५- प्रालंबक ६-केयर - अंगद - मध्यर - कटीसूत्र १० - महा ११ - चचल कुंडल १० - वर्णपुर १३ -कंकण १८-मंजीर १५ - कटक १६- श्रीगंध । 'महाध्वजा ।' इति हेमचन्द्रः । मिट्टी लांछनान्यतां । प्रतिष्ठा ११ / ३. 'नद्गर्भन प्रतिदिन स्वकुलस्य लक्ष्मी दवा मदा विधकलामिव वर्धमानान सार्धं मुरं भंगवतां दशमे तम्य श्री वर्धमान इति नाम चकार राजा । 2. -वर्धमान चरित्र. १७-२१.

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