Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 44
________________ ब्रह्मचर्य और सीमित परिग्रह रूप पंच अणुव्रतों का आचरण किया। 'स्वायुरावष्ट वर्षम्यः सर्वेषां परतो भवत् । उदिताष्ट कवायाणां तीवां देश संयमः ॥' -आचार्य गुणमद्र, उत्तर पुराण, ६।३५ वईमान के नामान्तर श्री वर्द्धमान तीर्थंकर के असाधारण ज्ञान की महिमा सुनकर मंजयंत और विजयंत नामक दो चारण ऋद्धि-धारक मुनि अपनी तत्त्व-विषयक कुछ शंकाओं का समाधान करने के लिए उनके पास आये; किन्तु श्री वर्द्धमान तीर्थंकर के दर्शन करते ही उनकी शंकाओं का समाधान स्वयं हो गया, उन्हें समाधान के लिए कुछ पूछना न पड़ा, यह आश्चर्य देखकर उन मुनियों ने तीर्थंकर वर्द्धमान का अपर नाम 'सन्मति' रख दिया।' 'तरवार्षनिर्णयात्माप्या सन्मतित्वं सुबोधवाक् । पूग्यो बागमाद्भवात्राकलंकाबभूविष ॥' -उत्तरपुराण ७३।२ एक दिन कुण्डलपुर में एक बड़ा हाथी मदोन्मत्त होकर गजशाला मे वाहर निकल भागा। वह मार्ग में आने वाले स्त्री-पुरुषों को कुचलता हुआ, वस्तुओं को अस्त-व्यस्त करता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। उसे देखकर कुण्डलपुर की जनता भयभीत हो उठी और प्राण वचाने के लिए यत्र-तत्र भागने लगी। नगर में भारी उथल-पुथल मच गयी। श्री वर्द्धमान अन्य वालकों के साथ क्रीड़ा कर रहे थे. मदोन्मत्त हाथी उधर ही जा झपटा। हाथी का काल जैसा विकराल रूप देख, १. सन्मतिर्महातीरी महावीरोऽन्त्य काश्यपः। नापाययो वर्षमानो यत्तीमिह माम्प्रतम् ॥' -धनंजय नाममाला ११५ 'पलं तरिति तं भक्त्या विभूष्योविभूषण । बोरः श्रीपर्षमानवत्वस्याहितवं व्यधात् ।। -उत्तरपुराण, ७४/२७६. २. 'मनोनुकतंच बोनुकतं नानाविधं क्रीडनमाचरन्ति ।। ये भरता जिनवालकेल ते सन्तु नामी कुलजाः कुमाराः॥ -प्रति.

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