Book Title: Tirthankar Varddhaman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ * महात्मा बुद्ध ने लिच्छवियों को 'स्वर्ग के देवता' कहा है, - - (देखी भिक्खु, लिच्छवियों की परिषद् को, भिक्खओ, देखो लिच्छवियों की परिषद् को ! भिक्खुओं, लिच्छवियों की परिषद् को देव-परिषद् (त्रयस्त्रिशं) समझो !' देवताओं की परिषद्-सी दिखाई पड़ने वाली लिच्छवी - परिपद को देखकर महात्मा गौतम बुद्ध कितने पुलकित और आनन्द-विभोर हो गये ! उन्होंने देव-परिषद् की तरह उसे दिव्य दर्शन कहा ! ) " ३२ ये संमिखवे ! भिक्खुनं देवा तावतिका सष्ट्ठिा । प्रोलोकेथ मिक्खवे ! लिच्छवनी परिसं, अपलोकेथ, मक्खवे ! लिच्छवी परिसरं ! उपसंहरथ मिक्खवे ! लिच्छवे ! लिच्छवी परिसरं तावतिका सदसन्ति ।।' -- महापरिनिव्वाण मुत्त - ६६ ON A PERIOD THE: 'शालीनाम कुण्डे - कुमारामात्याधिकरण (स्य ) '* SEAL LEGEND VAISALI BELONGING TO THE GUPTA READS VESALINAMAKUNDE A. S. 1. R. for 1913-14 Plate XIVII (with an account on p. 134 Seal No. 200„ सिन्धुदेशे विशालाeयपनने चेटको नृपः । श्री मज्जिनेन्द्र पादाब्जसेवन कम भवतः ॥ - प्रागधना कथा कोष ४, पृ. २२८, वैशाली । 'शिल्प विपयद वंशाली नगर मनालव परमाहुच्चेटक मही पतिगं ।' -- चामुण्डरायकृत, वर्धमान पुराण. पू. २६५.

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100