Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ खण्ड : ३ प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकात्राये प्रथम परिच्छेद प्रबुद्धाचार्य स्वतन्त्र - रचना-प्रतिभा के साथ टीका, भाष्य एवं विवृत्ति लिखनेकी क्षमता भी प्रबुद्धाचाय में थी । श्रुतधराचार्य और सारस्वताचार्यांने जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की थी उसीको प्रकारान्तरसे उपस्थित करनेका कार्य प्रबुद्धाचार्योंने किया है । यह सत्य है कि इन आचार्योंने अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा परम्परासे प्राप्त तथ्योंको नवीन रूपमें भी प्रस्तुत किया है। अतः विषयके प्रस्तुतीकरणकी दृष्टिसे इन आयायका अपना महत्त्व है । प्रबुद्धाचार्यों में कई आचार्य इतने प्रतिभाशाली हैं कि उन्हें सारस्वताचायोंकी श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है । किन्तु विषय निरूपणकी सूक्ष्म क्षमता प्रबुद्धाचार्यों में वैसी नहीं है, जैसी सारस्वताचार्योंमें पायी जाती है। यहाँ इन प्रबुद्धाचायकि व्यक्तित्व और कृतितत्वका विवेचन प्रस्तुत है । आचार्य जिनसेन ( प्रथम ) आचार्य जिनसेत प्रथम ऐसे प्रबुद्धाचार्य हैं जिनकी वर्णन क्षमता और काव्य-प्रतिभा अपूर्व है । इन्होंने हरिवंशपुराण नामक कृतिका प्रणयन किया ܚ ; = 1

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 466