Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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[ ] १० सं० पंक्ति सं० असुद्ध
शुद्ध तह यह तम
तह य तम इस कार
इस प्रकार धेयस्कर
श्रेयस्क ५९९७ वृषभष्ट
वृषभेष्ट ६०३ ।। ६६१-६६२॥
॥ ६५६-६६२॥ ६०३ १७ लोयंतपुरा
लोयंतसुरा होत है
होते हैं ६०८ दृष्टव्य
द्रष्टव्य ६०९ १२ जीवसमाज
जीवसमास ग्रवयक
अवेयक उनम
उन में 'स्वर्गसुख के भोक्ता' शीर्षक के अन्तर्गत ७२५-७२६ दो गाथायें दर्शायी हुई हैं, वस्तुतः यह एक ही श्लोक है उसे संख्या ७२५ माने । ।। ७२७ ॥
॥ ७२६ ।। एवंमारिय
एबमाइरिय - १५७५ ध०
+ १५७५ ध० ६२५ सव
सर्व ६३७ सुरौनिपातु
सुरोधैनिपातु मंऽभूत विदधात्य सा
विदधात्यासी नते त्रिलोकसारस्ये
त्रिलोकसारस्य ६४० १४ प्रभोदभर्ती
प्रमोदभर्ती ६४० २०
यत्नात् विशेष 1-पृष्ठ २१७ से २८७ तक फोलियो में 'पंचमो महाहियारो' छप गया है । कृपया इसके स्थान
पर २१७ पृ० से २४१ तक 'ट्ठो महाहियारो' पढ़ें भोर पृ० २४३ से २८७ तक 'सत्तमो महाहियारो' पढ़ें।
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मेऽभूत्
यानात्