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________________ " " " 22 ६०४ » [ ] १० सं० पंक्ति सं० असुद्ध शुद्ध तह यह तम तह य तम इस कार इस प्रकार धेयस्कर श्रेयस्क ५९९७ वृषभष्ट वृषभेष्ट ६०३ ।। ६६१-६६२॥ ॥ ६५६-६६२॥ ६०३ १७ लोयंतपुरा लोयंतसुरा होत है होते हैं ६०८ दृष्टव्य द्रष्टव्य ६०९ १२ जीवसमाज जीवसमास ग्रवयक अवेयक उनम उन में 'स्वर्गसुख के भोक्ता' शीर्षक के अन्तर्गत ७२५-७२६ दो गाथायें दर्शायी हुई हैं, वस्तुतः यह एक ही श्लोक है उसे संख्या ७२५ माने । ।। ७२७ ॥ ॥ ७२६ ।। एवंमारिय एबमाइरिय - १५७५ ध० + १५७५ ध० ६२५ सव सर्व ६३७ सुरौनिपातु सुरोधैनिपातु मंऽभूत विदधात्य सा विदधात्यासी नते त्रिलोकसारस्ये त्रिलोकसारस्य ६४० १४ प्रभोदभर्ती प्रमोदभर्ती ६४० २० यत्नात् विशेष 1-पृष्ठ २१७ से २८७ तक फोलियो में 'पंचमो महाहियारो' छप गया है । कृपया इसके स्थान पर २१७ पृ० से २४१ तक 'ट्ठो महाहियारो' पढ़ें भोर पृ० २४३ से २८७ तक 'सत्तमो महाहियारो' पढ़ें। ६२० मेऽभूत् यानात्
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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