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________________ [घ ] पृ० सं० ४८५ ५०६ ५१३ ५१३ पंक्ति सं० अशुद्ध चित्र उपरिन ।। २५८ ।। तालिकापंक्ति २ कुबर ता.कॉलम ७,९ दव, दवों के पडिदादी विनयसिरि ता. कॉलम ७ प्रत्यक शुद्ध उपरिम ।। २५६ ।। कुबेर देव, देवों के पडिदादीण विण्यसिरि प्रत्येक ५१८ २ ५३८ गाथा ३६३ का प्रयास प्रकार पढ़ें- इन्द्रों के आस्थान में पीठानीक के अधिपति देव पादपीठ सहित बहुत से रत्नमय आसन देते हैं ।।३९३।। गाथा ३९४ का प्रयं इस प्रकार पढ़ें-स्थान के विभागों को जानकर जो जिसके योग्य होता है, देव उसे वैसा ही ऊँचा या नीचा तथा निकटवर्ती अथवा दूरवर्ती आसन देते हैं ।।३९४।। बैडूर्य ग्यारहवें ग्यारह में चोदस ३ ५४० ५५५ चोसद्द अक रणदावट्टम्मि अरिष्ट १ साल सुरसमिति ९ सा० शातकम ( यमब) गेंदावट्टम्मि अरिष्ट को सा. सुरसमिति की ९ सा. शातक में ( यम व) ५७७ ५८३ ५८४ सुत्र ५८४ ५८८ ५८९ चारम जम्मते वाल सखेज्ज चार में जम्मंते वाले संखेज्ज
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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