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सम्यक्त्व चारित्रे ||3||
सूत्रार्थ : औपशमिक भाव के दो भेद होते हैं - औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक
चारित्र |
विवेचन : दर्शन सप्तक (अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व मोह, मिश्र मोह और सम्यक्त्व मोह) इन कर्म प्रकृतियों के उपशमित (दबाई हुई) होने पर जो सम्यक्त्व होता है वह औपशमिक सम्यक्त्व है।
औपशमिक भाव के भेद
समस्त मोहनीय कर्म के उपशम से औपशमिक चारित्र प्राप्त होता है इनमें से सम्यक्त्व पद को पहले में रखा है क्योंकि चारित्र सम्यक्त्व पूर्वक ही होता है।
औपशमिक भाव
औपशमिक सम्यक्त्व
I
मोहनीय कर्म की 7 प्रकृतियों के दबने से
ज्ञान
क्षायिक भाव के भेद
-दर्शन-दान लाभ-भोगोपभोग वीर्याणि च ||4||
सूत्रार्थ : ज्ञान, दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य यह सात तथा 'च' शब्द से संकेतित पूर्व सूत्र में उक्त सम्यक्त्व और चारित्र ये नौ क्षायिक भाव हैं।
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औपशमिक चारित्र
मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतियों के दबने से
विवेचन : क्षायिक भाव सदा ही कर्म के क्षय होने पर होते हैं। इस अपेक्षा से यहाँ ज्ञान, दर्शन आदि के पहले क्षायिक शब्द का उपयोग कर लेना चाहिए। जैसे क्षायिकज्ञान क्षायिक दर्शन आदि। क्षायिक ज्ञान और क्षायिक दर्शन को केवलज्ञान और केवलदर्शन भी कहते हैं।
केवलज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से
केवलज्ञान
दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से
केवलदर्शन
पांच विध अन्तराय कर्म के क्षय से
दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय से
चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से
दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य
क्षायिक सम्यक्त्व
क्षायिक चारित्र
इस प्रकार क्षायिक भाव के नौ भेद किये गये है।
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