Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ आहारक शरीर । परिवर्तित किया जा सकता है, जो इच्छानुसार रूपों में बदला जा सकता है, वह वैक्रिय शरीर है। इसमें रक्त, मांस आदि नहीं होते हैं। सड़न-गलन आदि धर्म नहीं होते, यह विशिष्ट प्रकार की प्रक्रिया द्वारा विविध रूपों में स्थूल और सूक्ष्म पुद्गलों से निर्मित होता है। C. आहारक शरीर - शुभ (प्रशस्त पुद्गल जन्म), विशुद्ध (निर्दोष कार्यकारी, और व्याघात (बाधा) रहित शरीर जो चौदह पूर्वधारी मुनिराज अपनी विशिष्ट लब्धि के द्वारा निर्मित करते हैं, वह आहारक शरीर कहलाता है अथवा तीर्थंकर परमात्मा की ऋद्धि देखने के लिए, विशिष्ट ज्ञान के लिए अपने संशय का निराकरण करने के लिए चौदह पूर्वधारी जिस शरीर का निर्माण करते है वह आहारक शरीर हैं। ऐसे शरीर से वे अन्य क्षेत्र में स्थित सर्वज्ञ के पास पहुँचकर उनके संदेह का निवारण कर फिर अपने स्थान में पहुँच जाते हैं। d. तैजस् शरीर : जो शरीर तेजोमय होने से खाये हुए आहार आदि को पचानेवाला हो तथा शरीर को कांति देनेवाला हो, वह तैजस शरीर है। जिस प्रकार कृषक खेत को क्यारों में अलग-अलग पानी पहुँचाता है, इसी तरह यह शरीर ग्रहण किये हुए आहार आदि को विविध रसादि में परिणत करके अवयव-अवयव में पहुंचाता है। सभी संसारी जीवों को यह शरीर होता है। ___e. कार्मण शरीर : कर्म समूह ही कार्मण शरीर है। आत्मा के साथ लगे हुए कर्मसमुदाय को कार्मण शरीर कहा जाता है। यह अन्य सब शरीरों की जड़ है क्योंकि कर्म के कारण ही शरीर की रचना होती है। तेजस् शरीर कार्मण शरीर शरीर औदारिक वैक्रिय आहारक तैजस कार्मण कर्म समूह सडन-गलन स्वभाव वाला, रक्त, मांस, अस्थि ___ आदि हो विविध क्रियाएं करने वाला या कभी छोटा, बड़ा, पतला आदि रूपों को धारण करने वाला चौदह पूर्वधारी अपनी विशिष्ट लब्धि के द्वारा अपने शंका का समाधान के लिए निमित्त करते है खाये हुए आहारादि पचानेवाला तथा तीनों शरीर को कांति देने वाला मनुष्य और तिर्यंच देव और नारकी चौदह पूर्वधारी सभी संसारी जीव सभी संसारी जीव

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162