Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 112
________________ उपर्युपरि ||19 || सूत्रार्थ : समस्त वैमानिक देव एक साथ न रहते हुए एक-दूसरे के ऊपर ऊपर स्थित हैं। (कल्पोपपन्न और कल्पातीत देवों के विमान कृमश: ऊपर-ऊपर है) सौधर्मेशान - सानत्कुमार- माहेन्द्र - ब्रह्मलोक - लान्तक - महाशुक्र - सहस्रारेष्वानत- प्राणतयोरारणा - च्युतयोर्नवसुग्रैवेयकेषु - विजय - वैजयन्त - जयन्ता ऽपराजितेषु सवार्थसिद्धे च ||20| - सूत्रार्थ : सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहसार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, नव ग्रैवेयक, विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध इनमें वैमानिक देव रहते है। विवेचन : : सूत्र 17 से 20 तक वैमानिक देवों के निवास की चर्चा की गई है। समतल भूमि से 900 योजन ऊपर से ऊर्ध्वलोक शुरू होता है। यानि वैमानिक देवलोक । विमानों में रहने के कारण ये देव वैमानिक कहलाते हैं। वैसे यह नाम पारिभाषिक ही है। क्योंकि अन्य जाति के देव भी विमान में रहते हैं। वैमानिक देवों के विमानों की यह विशेषता है कि वे अतिशय पुण्य के फल स्वरूप प्राप्त होते हैं उनमें निवास करने वाले देव भी विशेष पुण्यवान होते हैं। जैसे मकान में मंजिल होती है, उसी प्रकार देवलोक में प्रतर होते है। मंजिल में कमरों की तरह प्रतरों में विमान होते है। वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं - 1. कल्पोपपन्न और 2. कल्पातीत कल्प में अर्थात् जहाँ इन्द्र, सामानिक, मंत्री आदि की व्यवस्था है और उनमें उत्पन्न होने वाले देव कल्पोपपन्न। ऐसे व्यवस्था बारहवें देवलोक तक है। जहाँ इन्द्र, सामानिक, मंत्री आदि की भेद-रेखा नहीं है, सभी देव समान हैं वे कल्पातीत कहलाते हैं। 9 ग्रैवेयक और 5 अनुत्तर विमानों के देव कल्पातीत हैं। ये सभी देव इन्द्रवत् होते है, अतः वे अहमिन्द्र कहलाते है। ये समस्त वैमानिक देव न तो एक स्थान में है और न तिरछे है किन्तु एक- - दूसरे के ऊपरऊपर स्थित है। 1, 2 देवलोक घनोदधि के आधार पर, 3, 4, 5 देवलोक धनवात के आधार पर (6,7,8) वाँ देवलोक घनोदधि और घनवात के आधार पर, इसके ऊपर सभी देवलोक के विमान आकाश के आधार पर टिके हुए है। 12 वैमानिक 1. सौधर्म, 2. ऐशान, 3. सानत्कुमार, 4. माहेन्द्र, 5. ब्रह्मलोक, 6. लान्तक, 7. महाशुक्र, 8. सहस्रार, 9. आनत, 10. प्राणत, 11. आरण और 12. अच्युत । 9 ग्रैवेयक 1. भद्र, 2. समुद्र, 3. सुजात, 4. सुमानस, 5. सुदर्शन, 6. प्रियदर्शन, 7. अमोह, 8. सुप्रतिबद्ध, 9. यशोधर । 5 अनुत्तर- 1. विजय, 2. वैजयंत, 3. जयंत, 4. अपराजित, 5. सर्वार्थ सिद्ध । hold ele 92

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