Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 135
________________ भावभाषा तो वीर्यान्तराय, मतिज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से तथा अंगोपांग नाम कर्म के उदय से प्राप्त होनेवाली जीव की एक विशिष्ट शक्ति है जो पुद्गल सापेक्ष होने से पौद्गलिक है। ऐसी शक्तिमान आत्मा से प्रेरित होकर वचन रूप में परिणत होनेवाले भाषावर्गणा के स्कन्ध ही द्रव्य भाषा है। इस प्रकार भाषा पुद्गल का कार्य है। मन : मनोवर्गणा से मन का निर्माण होता है। मन दो प्रकार का हैं- a) द्रव्यमन और b) भाव मन। गुण-दोष विचार या लब्धि और उपयोग लक्षण भाव मन पुद्गलों के आलम्बन से होता है, इसलिए पौद्गलिक है। आत्मा के ज्ञानावरणीय वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से आलम्बन बननेवाले या सहायक जो पुद्गल शक्ति विशेष से युक्त होकर मन रूप से परिणत होते है वे द्रव्य मन है। पदगल 6 श्वासोश्वास : जीव द्वारा उदर से बाहर निकाला जानेवाला निःश्वास वायु और उदर के भीतर पहुँचाया जाने वाला उच्छ्वास वायु ये दोनों पौद्गलिक है और जीवन पद होने से आत्मा के उपकारी है। रोग से पीड़ित सुख-दुख : सुख और दुख जो जीव अनुभव करता है, उनका अंतरंग कारण सातावेदनीय और असातावेदनीय कर्म है, जो स्वयं पौद्गलिक है। कोमल स्पर्श गर्मियों में ठंडी हवा आदि भी मन को सुख देते है। इसी प्रकार रूक्ष और कठोर स्पर्श तथा तीखे काँटे आदि भी दुख की अनुभूति कराते है। ये सब बाह्य सुख पूर्वक शयन कारण है। जीवन-मरण : आयुष्य कर्म के उदय से देहधारी जीव के प्राण और अप्राण का चलते रहना जीवन है और प्राणापान का उच्छेद हो जाना मरण है। HalALRSiral 843645 JalacescalamhlefaesomeVIAF GED115040:25A05 POPersorievalADSe-ORGAPNA Laba 439:58 -RRAMusahellorarjungh

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