Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 150
________________ गुण वाले पुद्गल के साथ बन्ध हुआ तो स्निग्ध गुणवाला पुद्गल रूक्ष गुण वाले पुद्गल को अपने रूप में परिणमा लेगा, यानी दोनों के सम्मिलन से जो स्कन्ध बनेगा वह स्निग्ध गुण प्रधान होगा। इसी प्रकार अधिक रूक्ष गुण वाले पुद्गल जब कम स्निग्ध गुण वाले पुद्गल के साथ बन्धन करेंगे तो उनसे निर्मित स्कन्ध में रूक्ष गुण प्रधान होगा। द्रव्य का लक्षण : गुण- पर्यायवद् द्रव्यम् ||37 || सूत्रार्थ: द्रव्य गुण और पर्याय वाला होता है। विवेचन : इस सूत्र में द्रव्य का लक्षण बताया गया है कि जिसमें गुण और पर्याय दोनों होते हैं वह द्रव्य है। प्रत्येक द्रव्य अपने परिणामी स्वभाव के कारण समय-समय में निमित्तानुसार भिन्न-भिन्न रूप में परिणत होता रहता है अर्थात् विविध परिणामों को प्राप्त होता है। द्रव्य में परिणाम जनक शक्ति विशेष को गुण कहते हैं और गुणजन्य परिणाम पर्याय है। अतः गुण कारण है और पर्याय कार्य । पर्यायों की उत्पत्ति गुणों के परिणमन से होती है। जैसे जीव का ज्ञान गुण संसार अवस्था में कभी मतिज्ञान रूप होता है और कभी श्रुतज्ञान रूप । इसलिए ये मतिज्ञानादि ज्ञान गुण जन्य पर्याय है । द्रव्य का सहभावी धर्म गुण कहलाता है और क्रमभावी धर्म पर्याय कहलाता है अर्थात् जो सदैव द्रव्य के साथ रहता है वह गुण है और जो परिवर्तित होता रहता है, वह पर्याय है। अतः गुण और पर्याय को छोडकर द्रव्य कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है। द्रव्य का लक्षण गुण 1. द्रव्य में परिणाम जन्य शक्ति 2. सहभावी 3. जो द्रव्य के सभी हिस्सों में पाया जाता है 4. ध्रौव्य रूप 5. नित्य कालश्चेत्येके ||38|| Juation Internat पर्याय गुण जन्य परिणाम क्रमभावी जो उत्पन्न और नष्ट होता है सूत्रार्थ : कुछ आचार्य काल को भी द्रव्य रूप मानते हैं। 1:30 उत्पाद - व्यय रूप अनित्य নতত

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