Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 133
________________ उसे धर्मास्तिकाय कहते हैं। जिस प्रकार मछली को तैरने में जल सहायक होता है अथवा वृद्ध पुरूष को चलने में दण्ड सहायक होता है। उसी तरह जीव और पुद्गल की गति क्रिया में निमित्त होनेवाला द्रव्य धर्मास्तिकाय है। गति की शक्ति तो द्रव्य में अपनी रहती है, परंतु धर्म द्रव्य उसे चलाने में सहायक होता है। जैसे मछली स्वयं तैरती है तथापि जैसे मछली को तैरने में सहायक जल होता है। उसकी वह क्रिया पानी के बिना नहीं हो सकती। पानी के अभाव में तैरने की शक्ति होने पर भी वह नहीं तैर सकती। इसका अर्थ है कि पानी तैरने में सहायक है। यदि वह न तैरना चाहे तो पानी उसे प्रेरणा नहीं देता। अधर्मास्तिकाय : जीव और पुद्गल की स्थिति (ठहरने) में उदासीन भाव से सहायक होने वाला द्रव्य अधर्मास्तिकाय रुकने में कहा जाता है। जैसे वृक्ष की छाया पथिक के लिए ठहरने में निमित्त कारण होती है। इसी सहायक तरह अधर्मास्तिकाय जीव और पुद्गल की स्थिति में सहायक होता है। - लल धर्म और अधर्म द्रव्यों का उपकार जीव और पुद्गल के गति और स्थिति में उपादान कारण - जीव-पुद्गल स्वयं अंतरंग निमित्त - क्रियावती शक्ति बहिरंग निमित्त - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय साधारण कारण - उदासीन भाव से सहायक, और अप्रेरक-धर्म और अधर्म द्रव्य विशेष कारण - पानी, दंड, छाया आदि b)

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