Book Title: Tattvartha Sutra Part 01
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 137
________________ हित-अहित की बातों के द्वारा मालिक पर उपकार करता है। संसार का प्रत्येक प्राणी एक दूसरे के उपकार या सहयोग पर आश्रित है। काल का उपकार वर्तना परिणामः क्रिया परत्वा-ऽपरत्वे च कालस्य ||22।। सूत्रार्थ : वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व-ये काल द्रव्य के उपकार हैं। वर्तना : परिवर्तन का स्वभाव! यद्यपि प्रत्येक द्रव्य अपनी निजी शक्ति से पर्याय रूप परिणमन करता है, नया-नया पर्याय धारण करता है, किन्तु काल उसमें निमित्त कारण बनता है। जैसे शरीर का जवानी से बुढ़ापे की ओर बढ़ना ये वर्तना है। परिणाम : द्रव्य का अपने स्वभाव को छोड़े बिना, परिवर्तनशीलता (वर्तना) अन्य पर्याय रूप में बदल जाना परिणाम है। जैसे बुढापा आ गया। क्रिया : क्रिया का अभिप्राय यहाँ गति है। एक क्षेत्र से अन्य क्षेत्र में गमन करना वह क्रिया है। क्रिया जीव और पुद्गल की होती है अन्य द्रव्यों की नहीं। परत्व-अपरत्व : ज्येष्ठत्व परत्व है और कनिष्ठता अपरत्व है। यह तीन प्रकार का हैं1. प्रशंसाकृत : जैसे धर्म महान है, अधर्म निकृष्ट है। 2. क्षेत्रकृत : अमुक स्थान निकट और अमुक स्थान दूर है। 3. कालकृत : राम की आयु 10 वर्ष है और श्याम की आयु आठ वर्ष। अत: राम श्याम से ज्येष्ठ है तथा श्याम राम की अपेक्षा कनिष्ठ है। काल का उपकार वर्तना ___परिणाम परिणाम क्रिया क्रिया परत्व परत्व अपरत्व अपरत्व पर्याय गति ज्येष्ठता कनिष्ठता परिणमन में निमित्त 14 ED-82018: Jalil Education internationar ( 117 FOMPersonal Prvate Use Only toriww.jamelibrary.org

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